क्यूँ मनुज इतने बेरहम हो रहें हैं ?
बेसुमार दौलत की चाहत में सब
नियमों और रिश्ते तोड़ने में लगे हैं
सारे उसूलों और मानवीय संबंधों
की बलि क्यूँ कर आज चढ़ा रहे हैं ....
मानवता रो रही है वसुन्धरा पर
कोमलता खोकर हो रहें हैं सब क्रूर?
माता पिता वृद्धाश्रम में रो रहें हैं
भाई भाई का हक क्यूँ मार रहे हैं ..
बिटिया को बोझ समझ बेदर्दी से
माँ बाप ही क्यों गला घोंट रहे हैं
गर जी गई नन्हीं तो परायी मान
भेद भाव कर उसको पाल रहे हैं ...
हे मानव सुन ले दिल की पुकार
क्या अपने साथ ले के जाओगे?
मिट जाएँगें तुम्हारे नामो निशान
धरे रहेंगे सारे,खाख में मिल जाओगे ....
मनुज जो बो रहे वही तो काट रहें हैं ..
क्यूँ मनुज इतने बेरहम हो रहे हैं...
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