Sunday 28 July 2019

राम सिया वनवास

विधा-चौपाई (16 भार मात्रा )

जभी कुमति ने डेरा डाला
आ ही गया दिवस फिर काला
जा रहा विटप राज दुलारा
छा गया नगर में अँधियारा ।।

युवराज चले अब महलों के
जो थे ज्योति सभी नैनों के
दुखद घड़ी की बेला आई
राज महल में दुर्दिन छाई   ।।

राम दुखों का कारण जाना
आदेश पिता का फिर माना
राग द्वेष बिन आज्ञा कारी
लगी कैकयी माता प्यारी  ।।

रघुवर नंगे पाँव चले वन
निष्प्राण हुए हैं सबके मन
लहर शोक की जन जन छाई
नगर अयोध्या विपदा आई

कौशल्या को मुर्छा छाई
गंगा यमुना नीर बहाई
बजे महल में पायल किसकी
बसे प्राण सीता में उसकी

हुआ पिया बिन जीना भारी
रही अधूरी पति बिन नारी
मौन उर्मिला थी शर्मीली
नैन नीर रख रही अकेली

चली विमाता चालें कैसी
कसम खिला दी क्यों कर ऐसी
पुत्र राम प्रस्थान किए वन
दशरथ तज दिए प्राण ततक्ष्ण

छा गई महल अजब उदासी
हुए राम लक्ष्मण वनवासी
विधान विधि का किसने जाना
दासी का क्यों कहना माना

भरत खबर सुन दौड़े आए
प्रजा संग माता को लाए
चरण पकड़ भाई के रोया
राम भरत को गले लगाया।।

मिलन घड़ी पर सब हैं रोए
देख राम को सुध बुध खोए
किस्मत ने सब खेल रचाया
कानन कुँज भी अश्रु बहाया

राम भरत को फिर समझाया
कर्तव्य सभी फिर बतलाया
कर्म करो तुम जब तक आऊँ
लौटे लेकर भरत खड़ाऊँ ।।

महान पूत राम कहलाते
मर्यादा की रीत सिखाते
सारे जग हो कुटुम्ब जैसे
युगों जनम लेते मनु ऐसे

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