दिन- शनिवार
कंस के आमंत्रण पर, कृष्ण मथुरा पहुँचे
जन्म भूमि का तिलक ले,मात की मुक्ति सोचे
मथुरा में कृष्ण को एक , वृद्धा पर दृष्टि पड़ी
केसर चंदन तिलक हार, वो थी लेकर खड़ी
कमर उसकी झूकी थी, पीठ पर कुबड़ पड़ी
महल में बूढ़ी कुब्जा , ही नामकरण पड़ी
राजा कंस के लिए वो, सुंदर हार बनाती
उसका नित्य कार्य था , मन से रोज करती
बीच राह रोक कान्हा, हँसते हुए बोले
कहाँ लिए जा रही, कंस! आज परलोक चले
रूपसी ये सुन ले तुम ,,कंस न राजा तेरा
केसर टीका हार से,, कर सत्कार मेरा
नहीं उड़ाओ मजाक , न बोल मुझसे झूठ
मेरे स्वामी कंस सदा, दुँगी उन्हीं को भेंट
एक लात में सीधी हो, गई कुब्जा बूढ़ी
अज्ञान की पट्टी खुली,कान्हा के पग पड़ी
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