Wednesday 24 July 2019

कुब्जा हुई सीधी

दिन- शनिवार

कंस के आमंत्रण पर, कृष्ण  मथुरा पहुँचे
जन्म भूमि का तिलक ले,मात की मुक्ति सोचे

मथुरा में कृष्ण को एक , वृद्धा पर दृष्टि पड़ी
केसर चंदन तिलक हार, वो थी लेकर खड़ी

कमर उसकी झूकी थी, पीठ पर कुबड़ पड़ी
महल में बूढ़ी कुब्जा , ही नामकरण पड़ी

राजा कंस के लिए वो, सुंदर हार बनाती
उसका नित्य कार्य था , मन से रोज करती

बीच राह रोक कान्हा,  हँसते हुए बोले
कहाँ लिए जा रही, कंस! आज परलोक चले

रूपसी ये सुन ले तुम ,,कंस न राजा तेरा
केसर टीका हार से,, कर सत्कार मेरा

नहीं उड़ाओ मजाक , न बोल मुझसे झूठ
मेरे स्वामी कंस सदा, दुँगी उन्हीं को भेंट

एक लात में सीधी हो, गई कुब्जा बूढ़ी
अज्ञान की पट्टी खुली,कान्हा के पग पड़ी

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