Tuesday 31 December 2019
कुम्हलाये नहीं कलियाँ
Sunday 29 December 2019
नेह से भरा गगन
Wednesday 25 December 2019
ढल रहा सूरज वक्त का
कुक्षी में नव तन
आधारित गीत
शिशु आगमन से हर्षित धरा,खिले जोश फिर यौवन का। सिलसिला एक चलता रहता , मानव के जन्म मृत्यु का।।
महका महका मन था सबका, तन नया कुक्षी में आया।
मन मुस्कुराया शिशु जन्म से, रो कर धरती पर आया ।।
मिले स्त्री पुरुष जब खिले फूल, नन्हीं जां से जग महका।
सिलसिला एक चलता रहता, मानव के जन्म मृत्यु का।।
कर्म अनोखा मनुज करे जब, गौरव गीत सभी गाते ।
त्याग बलिदान की गाथा मनु, युगों तलक गुनगुनाते ।।
सूनसान जगत खिलखिलाया, हुआ अवतरण मानव का ।
सिलसिला एक चलता रहता, मानव के जन्म मृत्यु का ।।
राग द्वेष से हटकर बचपन, रंग जवानी के कितने ।
मोह बुढ़ापे में भंग हुआ, बदले गिरगिट से अपने ।।
अंतहीन सिलसिला दुखों का , जीवन चक्र यही जग का ।
शिशु आगमन से हर्षित धरा,खिले जोश फिर यौवन का ।
उषा झा
पुष्प की पीड़ा
अरुणिम अभ्र
Thursday 19 December 2019
ऋतु की मार
पारा उत्तराखंड की ,,रोको बनकर ढाल ।।
छुपा दुबक कर भानु है, डरा गगन का भूप ।
सर्दी में तन ठिठुरता, बेजान हुआ धूप ।।
प्रकोप सर्दी की बढ़ी , काँप रहे हैं गात ।
ओस वृक्ष पर छा गया, ढ़के सभी हैं पात ।।
धनिक रजाई में छुपा , चबा रहा बादाम ।
दीन रबड़ी को तरसे, दे दो दाता राम ।।
सीत लहर में भी कृषक, बो रहा स्वप्न बीज ।
चैन नहीं उसको कभी, नहीं किसी पर खीज ।।
द्वार खड़े जबसे शिशिर, शीतल हुआ समीर ।
एक समान साँझ सुबह , खग वृन्द भी अधीर।।
ऋतु की मार दीन पर पड़े, बर्फ पड़ी है घैल ।
किसान भीषण ठंड़ में , काँधे पे हल बैल ।
दुबक गए दिनकर कहाँ, रही कुहासा मार ।
ठिठुर रहा तन ठंड से, मनवा है बेजार ।।
कातर नैना भोर से , हों कैसे अब स्नान ।
मंदिर भी बासी रहे, मुश्किल पूजन ध्यान ।।
उषा झा स्वरचित
Sunday 8 December 2019
हर परिस्थिति में अनुकूल बबूल
Monday 2 December 2019
दिल को है अमर्ष
Sunday 1 December 2019
सुगढ साझ मन हेरती
Wednesday 27 November 2019
जीवन के संताप
धन दौलत बेकार , जरा तुम यही परेखो ।
धन बल का अभिमान, बँधा माया का फेरा ।।
धोया कब मन मैल , हरदम स्वार्थ में जीते ।
फिसल गए जब वक्त , मनुज क्यों लगते रीते ।।
ढलती जीवन सांझ, सुहाने पल हैं बीते ...।।
Monday 25 November 2019
शब्दों की शह और मात
विधा- दोहे
बाजीगर दिन रैन ही , सोचता नव बिसात ।
खेल अनोखा खेलता, शह को मिलता मात ।।
हार जीत के खेल में, जीवन जाए बीत ।
व्यर्थ वाद विवाद करे, गाते अपनी गीत ।।
दुख सुख जीवन चक्र है, मिले हमें सौगात ।
प्रतिकूल अनुकूल बने , तम की कटती रात ।।
स्याह हृदय सफेद करें, ले लो प्रभु का नाम।
नफरत बदले प्यार में ,नेक करो कुछ काम।।
फैले प्रकाश हर्ष का , छँटे उर अंधकार ।
जगमग अब घर द्वार में ,सुख बरसे आगार ।।
पथ अधर्म का छोड़ दो, मानवता ही धर्म ।
त्याग दया है मनुजता, मनुज करो कुछ कर्म ।।
ऊँच नीच में मनु बँटा, मानसिकता बिमार ।
दीन -धनिक दिल कब मिले,नैन धन का खुमार।।
खिले हृदय पुहुप
Thursday 21 November 2019
खो न जाए भरोसा
विधा - इन्द्रवज्रा वर्णिक छंद
221 221 121 22
थोड़े गमों में घबरा न जाओ
थोड़ी खुशी मेंं इतरा न जाओ
आए न कोई फिर भी बुलाओ
रिश्ते पराये सब से निभाओ ।।
दोनों हथेली पर हो भरोसा
तो जीत आसान बने हमेशा
दे भाग्य को तू कबहूँ न दोषा
कर्तव्य हीना न मिटे कुदोषा ।।
टूटे दिलों को तुम जोड़ देना
रूठे न कोई यह सोच लेना
रास्ते सभी जीवन में खुलेंगे
मुस्कान तेरे लव पे सजेंगें ।।
काँटे कभी मंजिल क्यों न रोके
ओ वीर खाना अब तो न धोखे
हारो न यूँ हिम्मत बुद्धि मानों
ओ सैनिकों धीरज अस्त्र जानो ।।
हो राह में संकट घोर यारो
काँटे बिछे हों फिर भी न हारो
शूलों भरे दामन पीर पाता
आशा न हो जी कब कौन पाता ।।
_________________________
Tuesday 19 November 2019
अनुपम अहसास
Monday 18 November 2019
मन ही दर्पण
Saturday 16 November 2019
सपना हुआ साकार
रूप लिया संवार , कब आयेगें सजना ।।
मुदित हृदय दिन रैन, प्रेम मिला उपहार है।
निर्मल मन आकाश, स्वप्न हुआ साकार है ।।
उषा झा
Friday 15 November 2019
बरसे प्रीत फुहार
Thursday 14 November 2019
बाजीगर
प्रेम के वशीभूत हरि
गाँधी युग पुरुष
लीलाधर घनश्याम
Wednesday 13 November 2019
शूरवीर
Tuesday 12 November 2019
प्यार का मौसम
राधा हुई दिवानी
कृष्ण संग राधा मगन , मनवा है बैचेन ।
रिश्ता अद्भुत प्रीत का,नैन बाँचते बैन ।।
नैन बाँचते बैन,प्रिये बिन मुश्किल जीना ।
पिय बिन तरसे नैन,सुहाता मधु रस पीना।।
डूब रही आकंठ, जले विरह में तन बदन ।
मुरली दई छुपाय, राधा के केवल कृष्ण ।।
पिया छुपे किस देश में , खोया मन का चैन ।
बस में अपना दिल नहीं , निशदिन बरसों नैन ।।
निशदिन बरसों नैन , ढूंढते हैं प्रियतम को ।
धड़कन करता शोर,सँभालो आकर हमको ।।
मन में तेरा आस,प्यास अबूूझ बुझे जिया ।
बसे तुम्हीं में प्राण, राधा विह्वल बिन पिया ।
बहका रहा मलय हिया ,लिए जाय किस देश ।
बस में अपना दिल नहीं ,मुग्ध दृग प्रेम भेष ।।
मुग्ध दृग प्रेम भेष , नैन ढूँढे है साजन ।
कहाँ सजन बिन चैन,प्रीत है अपना पावन ।।
राधा के मन कृष्ण ,पुष्प हो जैसे महका ।
दिल कान्हा को वार,नयन है बहका बहका ।
मोहित करती कामिनी मटकी फोड़े कृष्ण ।
नीर घट से छलक रहा, लगते अद्भुत दृश्य।
लगते अद्भुत दृश्य , भींग गए सब वस्त्र है ।
झांक रहे सब गात, नैन लाज से त्रस्त है ।
विह्वल करता प्रेम, मानिनी हृद में शोभित ।
जादू करता रूप , कामिनी हुई है मोहित ।।
Sunday 10 November 2019
बावरी गोपिन
मापनी - 211* 8 सगण 12 वर्ण पर यति
211 211 2 11 211 211 211 2 11 211
प्रेम सुधा बरसी सब आँगन , बाजत है मुरली मन भावन
पावन पूनम की जब रौशन , रात हुई फिर चाँद छुपा मन
गोपन नैनन शीतल ठंडक रास रचा वत कोप भुलावन
नेह भरे सब के हिय ये धन ,छीन सके अब कौन बुलावन
पुष्पित प्रेम सरोवर डूबि रही मुरली सुन, गोपन धावत
कंचन देेह सुखाय गये प्रभु प्रीति डली मिसरी सन लागत
काम सभी बिसरा कर माधव संग चली मन जो बहकावत
झूमि रहा नर नारि सभी मिलि साँझ भये सब झूलन गावत
कृष्ण बसे मथुरा नगरी सब , भूल सखा अब केवल ,
वो छलिया अब याद करे तब , दंश वियोगन शूल जले सब
पीर दिये विरहा तड़पी वृृृषभानु सुता उर तीर चले जब
उषा झा (
Saturday 9 November 2019
सरहद पे लहराए केसरिया
Thursday 7 November 2019
विश्वास
खुद पर रख विश्वास लो, तभी सफल सब काज ।।
मम हृदय घनश्याम बसो,नेह तुम से अपार ।
मुझे दुखों से तार दो, लो अपने पर भार ।
Saturday 2 November 2019
पहचान
Friday 1 November 2019
कुरीति
मनुजता बेजार
हरि के अद्भुत प्रेम
मन से जो उन्हें भजते, भक्त लगते अनूप ।।
भक्त लगते अनूप, हैं बस में वो प्रेम के ।
भूल अगर मान लो ,रखे छाँव में नेह के ।।
झूठे चलते बेर , ,वात्सल्य से भरे प्रेम ।
हृदयंगम में भक्त , हरि के अद्भुत प्रेम ।।
सबरी हो कर के मगन ,हुई प्रेम में लीन
हरि दर्शन को तड़पती , जैसे जल बिन मीन
जैसे जल बिन मीन, प्रेम की भूखी सबरी
सुध बुध दई भुलाय, हर्ष में खुद को बिसरी
आई जब वह होश , लगे ज्यों हुई बावरी
हरि को देती बेर, नेह से चखकर सबरी
Thursday 31 October 2019
कड़वी याद
122 2 122 2 12 22 1222
तुम्हें फिर याद कर आँखें जगी बस पीर सोती है ।
उदासी अब गमों के बीज ही हर वक्त बोती है ।।
कभी तुमने मुझे भी प्यार कर रखते पनाहों में ।
पराये क्यों किया उर जख्म से बेजार रोती है ।।
हृदय तो अब तलक मंजर मिलन के देख कर जीता ।
सुहाने दिन ढ़ले अब भी जतन से क्यों सँजोती है ।।
जला दिल बात कड़ुवी याद करके पिघलती रहती ।
तड़प कर मन मुझे अब आस बंधाती न होती है। ।
हमेशा मन दुखाया जो उसे मैंने दिया ये दिल ।
जगी अब नींद से उनपर सभी विश्वास खोती है ।।
उषा झा (स्वरचित )
खंडित विश्वास
Saturday 26 October 2019
प्रेम दीप जले
आठ सगण और गुरू (112/8 2)
112 112 112 112 112 112 112 112 2
धनतेरस की शुभ साँझ भये धन धान्य सभी घर में बरसा दे
घर द्वार सजा सब बैठ गए कब आंगन पैर कुबेर सहसा दे
मन ज्योति जले ,दिन रैन बढे खुशियाँ कमला धन तू बरसा दे
मग दीपक एक जले यम दूर रहे वरदे, मुख सिर्फ हँसा दे
प्रिय नेह भरे जब दीप जले मदहोश हुआ मन भींग रहा है
घर रौशन प्रेम करे सबके घृत डाल अहं ,हृद पींग रहा है
मुख दर्शन को उनके मचले मनमोहन, क्यों उर धींग रहा है
बस प्रीत प्रकाशित हो दिल में तम दूर रहे , तन भीग रहा है
Friday 18 October 2019
वियोग
1222 1222 122 2 2212
प्रिये मेरी खबर ले लो उदासी तड़पा रहा ।
तुम्हारी याद देते दर्द मुझको अब भटका रहा ।।
अभी तक देखती राहें तुम्हें ही दिल चाहा करे
प्रणय के दिन दिखाते ख्बाव कितने,मन महका रहा ।
कई दास्तान की खोली अभी मैंने फिर पोटली ।
पुरानी याद नस्तर क्यों चुभा कर तन दहका रहा ।।
अकेली अब चली जाती विरानी सी सूनी डगर ।
वफा पर चोट गंभीर , जख्मी तन सहला रहा ।।
जिगर की है जगी आशा कभी मुझपर बहुरे सजन ।
निराशा में मरू तृष्णा नयन को फिर दिखला रहा ।।
उषा झा (स्वरचित )
देहरादून( उत्तराखंड )
सीता स्वयंवर
विधा- मनहरण घनाक्षरी
8, 8, 8, 7
तोड़ दिए धनु राम
बज उठे शंख नाद
हर्षित थे ऋषि संग
जनकपुर धाम
जनक के प्रण पूर्ण
डाल दी सिया माला
द्वय दिल एक हुए
मिले तप का दाम
देख के टूटे घनुष
विश्वामित्र थे मायूस
ऋषि दाए ज्यों ही शाप
मिले दुष्परिणाम
खतम हुआ आवेश
हृद हुए भावावेष
हुए बहू पश्चाताप
बिगड़े सब काम
होनी पर बस नहीं
दो दिल मिले नहीं
विलग हुए थे दोनों
भाग्य हो गए बाम
उषा झा (स्वरचित )
देहरादून उत्तराखंड
Sunday 6 October 2019
स्वार्थ लील गए रिश्ते
सिंहावलोकित(दोहे )
चालें बाजीगर चली ,फँस जाते मासूम ।
मासूम दूध से धुले, पकड़े शातिर दूम ।।
हृदय में टकराव बढी, आये रिश्ते स्वार्थ ।
स्वार्थ कारण विनाश के, कर मनु कुछ परमार्थ ।।
लालच की पराकाष्ठा , करे करु क्षेत्र याद ।
याद अनगिनत हृदय में , अपनों में ही बाद ।।
लालच भारी प्रेम पर, लहू का कहाँ मोल ।।
मोल जब होता दिल का, रिश्ता फिर अनमोल ।।
जाना खाली हाथ है , छुपे हृदय क्यों दाग ।
दाग तो भद्दा दिखता, सजा हिया के बाग ।।
Friday 4 October 2019
रेख मनुजता की
विधा - श्रृंखला बद्ध (दोहे)
वशीभूत हरि प्रेम के, हृदयंगम में भक्त ।
बँध जाते है स्वयं हरि,नियम खत्म सब सख्त।
नियम खत्म जब सख्त हो , बहे व्यर्थ में रक्त ।
मानवता पर चोट जब, तब मर्यादा जप्त ।।
तब मर्यादा जप्त हो ,आता हरि को क्रोध ।।
तन विराट धारण किए , हरि के रूप अयोद्ध ।।
हरि के रूप अयोद्ध थे , समा गए संसार ।
यशुदा इतनी डर गई,विस्मित नैन निहार ।
विस्मित नैन निहारती, कुटिल मनुज को देख ।
गिर मनुष्य कितने गए , मिटे मनुजता रेख ।।
मिटे मनुजता रेख जब , घृणा बिकै बाजार ।
प्रेम नेह दिल में नहीं, रिश्ते है मँझधार ।।
रिश्ते है मँझधार में, करे प्रेम व्यापार ।
बना खिलौना दिल लिया, जता रहे अधिकार ।।
सपने पूच्छल तारे
विधा - गीत
ख्वाहिशें ली अंगड़ाईयाँ, जुगनू बन चमक रहे
आये तारों की बाराती , क्यों गुमसुम खड़े गुणे ।
आज मन पंछी सा उड़े हैं ,तुमको ही ढूंढ रहे
देख क्षितिज में लाली छायी, प्रियतम इन्तजार में ।
फिर से मृगमरीचिका देखो, मरू में भरमा रहे
नैन आस की बदली आई, सुहाने दिन ढल रहे।
ख्वाहिशों की....
ये कैसी उर को प्यास लगी , बेबस पाँव जमे हैं
कौंध रही यादों की बिजली , जड़वत हुए ठगे हैं ।
पूनम की रात बैलगाड़ी, लिये सैर को निकले
थँसा वक्त का पहिया ज्यूँ ही, अब तो दम निकल रहे।
ख्वाहिशों .....
दूर चले आए हम कितने , छुट गए सभी अपने
तन्हा सफर कटे अब कैसे, पूच्छल तारे सपने ।
छोड़ जगत को जो जाते हैं,बने प्रकृति के गहने
लता वृन्द में खोज रहे हैं , वृन्दावन भटक रहे ।
ख्वाहिशों .....
Wednesday 2 October 2019
सपना गाँधी का
विथा- सिंहावलोकित (दोहे)
गाँधी का एक सपना, हिन्सा जग हो खत्म ।
खत्म ईष्या द्वेष करें, मिटा हृदय से क्षद्म ।।
कहते गाँधी थे हमें , रिश्ते रहे प्रगाढ़ ।
प्रगाढ़ प्रेम विभेद बिन,लाओ हृद से काढ़।।
नहीं मनुज भूखा रहे,सपने भर लो नैन
खुशियाँ छलके नैन से ,भरे नेह से रैन ।।
ऊँच नीच निकृष्ट कथन ,सब है एक समान ।
समान काया मनुज के,विचार क्यों असमान।।
जल वायु खुशी गम मिले,सभी ईश के पुत्र ।
पुत्र धर्म का फर्ज कर, लक्ष्य से गुम कुपुत्र ।।
द्वेष हाॅवी मानव पर , राह करे अवरुद्ध ।
राह अवरुद्ध दुखद है , रहते गाँधी क्षुब्ध ।।
बापू ने जो सीख दी, दिल से कर स्वीकार ।
स्वीकार कर स्वच्छ धरा , अब न करो अपकार ।।
Tuesday 1 October 2019
रिश्ते प्यार से
विधा' - सिंहावलोकित दोहे
दिल के रिश्ते, युगों से, हुआ प्रेम-आधार ।
आधार, प्रीत जगत की,बने तभी संसार ।
मन-मंदिर में प्रेयसी, बसी हैं रोम-रोम ।
रोम-रोम हर्षित हुआ,करे प्रेम, हृद मोम ।
पलकों में प्रियतम बसे,देख रही वो राह ।
मुश्किल कितनी, राह हो,प्रीत है बेपनाह
मोती टपके नैन से, देते प्रीतम शूल।
शूल से बोझिल,पलछिन,उड़े ख्वाब के धूल ।
दंश-विरह के जब मिले,मुख से निकले आह।
आह से प्राण न निकले , ईश करे आगाह ।।
रहें संग, दोनों युगल, हो जीवन में प्यार ।
प्यार बिन अधूरे मनुज , बहे प्रेम रस धार ।।
चाहत के इकरार से , है जिन्दगी हसीन ।
हसीन जब हो हमसफर , भाग्य नहीं फिर दीन ।।
विश्वास, त्याग, नेह से,दिल लेते हैं जीत ।
मान हार लो जीत कर,यही प्रीत की रीत ।।
उजड़े घर फिर से बसे, दिल में हो संकल्प
संकल्प से रिश्ते सुधरे , बस प्रेम ही विकल्प ।।
Saturday 28 September 2019
युग द्रष्टा घनश्याम
विधा- दुमदार दोहे
बहु भाग्य वृन्दावन के, बाल-कृष्ण का रूप।
नटखट माखन चोर बन , लगते कृष्ण अनूप ।।
जी लीला धर ले उड़े ।
नेह गोपी के उमड़े ।।
चोरी माखन नित्य ही , करें सखा, गोपाल ।
गोपी करें शिकायतें, जाते थे वो टाल ।।
जब कान्हा पकड़े गए ।
गोप संग जकड़े गए ।।
मुग्ध नैन ब्रजवास के, देख अलौकिक रास ।
मोहित राधा, कृष्ण पर, बंसी फूँके श्वास ।।
वो यशुदा का लाड़ला ।
गुपियन का भी लाड़ला ।
ब्रजभूमि के भाग्य खुले, कण कण में भगवान ।
पूरा द्वापर में हुआ , देवकि को वरदान ।।
कंस संहारा गया ।
दानव मारा गया ।।
भूल कृष्ण सबको गए, धेनु, यमुन के तीर ।
राज-काज में वे बहे, गुपियन बहता नीर ।।
बाम अंग रुक्मी नार ।
गोवर्धन अँगुर धार ।।
पार्थ कृष्ण को बहु प्रिय , सौपा गीता ज्ञान
मोह भंग अर्जुन हुआ, नष्ट हिया अज्ञान।
बने सारथी मित्र के ।
महभारत के चित्र थे।।
पाण्ड़व अकेले जब हुए, सिर्फ कृष्ण थे साथ ।
कुचला सिर अन्याय का , मिली जीत प्रभु हाथ ।।
दिखा मार्ग, मानव दिए।
;रूप विराटी धर लिए।।
Friday 27 September 2019
शिव ही सृष्टि
विधा - दूमदार दोहे
जटा चंद्र ग॔गा बसे , अद्भुत योगी राज।
डमडम डमरू बज रहे,नाच रहे नटराज ।।
शिव के माला साँप ।
नंदी जाये भाँप ।।
शोभते रुद्राक्ष गले , रक्तिम नेत्र विशाल ।
भूत प्रेत नंदी लिये , घूमते महाकाल ।।
भस्म रमाये अंग ।
शिखर पार्वती संग ।।
भोले निर्मल हृदय के , पल में दें वरदान ।
दानव भी जब पूजते , दे तभी महादान ।।
अमर हुए सब देव
खुश हुए महादेव ।
समुद्र मंथन जब हुआ, निकले थे विष सोम ।
माणिक लूटे देव सब, देख मोहनी भौम।
सभी दानव देव लडे।
अमृत पान को वे अड़े ।।
कौन हलाहल विष पिये ,आफत मे थी जान ।
देव असुर,भयभीत थे , शंभु किए विष पान ।।
सब कहे नील कंठ ।
सभी क्रोध में संठ ।।
गौरी संग प्रसन्न शिव , रहते हैं कैलाश ।
होते हैं भक्त अति प्रिय ,करे दुष्ट का नाश ।।
भोले, भोले नाथ ।
वे है दीना नाथ।।
पाप जगत में जब बढे, धरे रोद्र शिव रूप ।
जब त्रिनेत्र खुलते गए, खत्म सृष्टि के भूप ।।
करे माफ शिव भूल ।
हरे भक्त के शूल ।।
बेरहम
कैसे करूँ उनकी बंदगी
बीच राहों पर है जिन्दगी
वफा की कीमत ही चुकाई
मिला सिर्फ मुझको रुसवाई
छँटे नहीं नैन से भ्रम कभी
करता था हर दिन दरिन्दगी
कैसे करूँ उनकी बंदगी ...
ढाया सितम टूटा दिल कहीं
दिया हृदय में वो जगह नहीं
दिल में भरती सिर्फ आह ही
साथ पल भर के दिए दर्द ही
बची है अब तन्हा जिन्दगी
कैसे करूँ उनकी बंदगी ...
उषा झा देहरादून
दिल पर बल न डालो
12122 12122 1 212 2 12122
रहा नहीं गम कभी हमें भी,खुशी मिली जो तुम्हीं सँभालो ।
भुला ,रहे तुम रहम कभी तो करो, हमें अब कुचल न डालो ।।
वफा नहीं वो करे उन्हें क्या कहे किसी से न आरजू अब ।
मियाँ दिखाते शकल न अपना,किसी परी पर फिसल न डालो
कभी पुकारा तुम्हें हृदय से, मगर न कोई जवाब पाया ।
चलो मिटा दो सुहानी यादें , खुशी में अब खलल न डालो ।
दिवा स्वप्न से जगी तो दिल का खुमार जाने कहाँ गया है।
यहाँ तो माँगे न भीख मिलती, चलो हृदय पर ये बल न डालो
नहीं गिला है सनम जहाँ भी रहो दुआ है मिले सभी सुख
गुजर गए वक्त प्यार के अब जुदा है राहें दखल न डालो।।
यकीन किस का करें जिगर पर लगी अभी चोट जो गहरा है ।
उड़ा रहा था पतंग जैसा , गिरी धरा पर पहल न डालो ।।
Thursday 26 September 2019
विकल राधा
विधा- मधुमालती
२२१२ २२१२
राधा विकल ,मन हो चली
यमुना किनारे रो चली
मोहन बिना, सूनी गली
वृषभानु की, वह लाड़ली
छलिया खुशी, सब ले गया
वह दर्द कितने दे गया
विरही भटकती राधिका
वह श्याम की है साधिका
कैसे जिए अब साँवरी
माधव पुकारे बावरी
बंसी बजा, अब मोहना
दुख से उबारो सोहना
जीवन कहीं, पर खो गया
जब दूर कृष्णा हो गया
प्रियतम कहाँ तुम हो गए
नेहा लगा क्यूँ सो गए
ब्रज की गली, चुपचाप है
हर ओर बस, संताप है
माया ठगे, से लोग हैं
यह लाइलाजी रोग है
उद्धव नहीं समझाइए
अब ज्ञान ना, बतलाइए
राधा नहीं, जब श्याम की
विधना भला, किस काम की
राम सिय वनवास
विधा-चौपाई/ दोहा(कड़वक)
विषय - राम वनवास
कैकयी सिया राम से ,,करती स्नेह अटूट
थी मंथरा कुटिल बहुत ,,महल डाल दी फूट
जभी कुमति ने डेरा डाला
आ ही गया दिवस फिर काला
जा रहा विटप राज दुलारा
छा गया नगर में अँधियारा
युवराज चले अब महलों के
जो थे ज्योति सभी नैनों के
दुखद घड़ी की बेला आई
राज महल में दुर्दिन छाई
जान लिया कारण दुख का
मान लिया आदेश पिता का
राग द्वेष बिन आज्ञा कारी
लगी कैकयी माता प्यारी
रघुवर नंगे पाँव गए वन
सबके निष्प्राण हुए मन
लहर शोक की जन जन छाई
नगर अयोध्या विपदा आई
कौशल्या को मुर्छा छाई ।
गंगा यमुना नीर बहाई ।
बजे महल में पायल किसकी
बसे प्राण सीता में उसकी
वैदेही जब वन चली ,,कानन विटप उदास
सिया पाँव छाले पड़े,,मलिन मुख नहीं खास
हुआ पिया बिन जीना भारी
रही अधूरी पति बिन नारी
मौन उर्मिला थी शर्मीली
नैन नीर रख रही अकेली ।।
चली विमाता चालें कैसी
कसम खिला दी क्यों कर ऐसी ।
पुत्र राम प्रस्थान किए वन
दशरथ तज दिए प्राण तत्क्षण ।।
छा गई महल अजब उदासी
हुए राम लक्ष्मण वनवासी
विधि का विधान किसने जाना
दासी का क्यों कहना माना
भरत खबर सुन दौड़े आए
प्रजा संग माता को लाए
चरण पकड़ भाई के रोया
राम भरत को गले लगाया ।।
दोनों भाई मिल रहे,, नैन बह रहे नीर
रघुवर भी विचलित हुए ,,था द्रवित उर अधीर
भाई मिलाप पीर भरा था
सब नैनों में अश्रु भरा था
किस्मत ने सब खेल रचाया
कानन कुँज भी अश्रु बहाया ।।
राम भरत को फिर समझाया
कर्तव्य सभी फिर बतलाया
कर्म करो तुम जब तक आऊँ
लौटे लेकर भरत खड़ाऊँ ।।
महान पूत राम कहलाते
मर्यादा की रीत सिखाते
सारे जग हो कुटुम्ब जैसे
युगों जनम लेते मनु ऐसे ।।
व्याकुल माँ कहती फिरे ,,हुआ ग्रह का मेल
राम सिया वन वन फिरे,,भाग्य का है खेल
उषा झा स्वरचित
दर्द दरिया की
विधा - मालिनी छंद
111 111 222 122 122
हर पल सहती नारी युगों से अकेली
सरस मन कभी कोई लगी ना पहेली
पल पल वह मुस्काती भली वो छबेली
सरल हृदय की होती खुशी ही सहेली
मुड़ कर न कभी देखी, पिता गृह छोड़ी
सहज गुनगुनाती बेतहासा न दौड़ी
बरबस उनको बाँहे पसारे पुकारे
उथल पुथल भारी आ गई जो बहारें
नयन जल बहे वो क्यों हुई थी परायी
चलन जगत की तुम्हें निभानी सदा ही
बिछुड़ कर सुता तो भूल जाती रवानी
बचपन छिन लेती है जवानी दिवानी
गुरु नीम समान
विधा- दुमदार दोहे
करें,प्रकाशित गुरु जहाँ, सब मिटे अंधकार ।
गुरु प्रकाश के पुंज हैं,करते वो उद्धार ।।
पथ दिखाएँ जब भटके ।
गलत रास्ते जब अटके।
गुरु, जीवन पतवार है,उन बिन डूबे नाव ।
सच्चे दर्शक राह के , उनका सहो दबाव ।।
सेवा कर ,लो लाभ सब ।
दर्शन पालो आप सब ।
गुरु बिना भेदभाव के , शिक्षा देत समान ।
भविष्य उनके चरण में , गुरु का कर सम्मान ।।
दिखलाओ अवगुण उन्हें ।
कभी न तुम टालो उन्हे।
गुरु समाज को सीचते , करके विद्या दान
छलके गंगा ज्ञान की , सबका हो उत्थान ।
मिटाते तमस जगत में ।
जगाते अलख हृदय में ।।
गुरु बोल लगते कड़ुवे , वो हैं नीम समान ।
अंकुश गुरु मन पर रखे, लेलो विद्या दान ।।
विकार हटाते सबके।
पवित आचरण मन के ।।
जीवन भटकता बिन गुरु , ज्यों पतंग बिन डोर ।
जीवन गढ़ते कुंभ सा , दक्ष अंगुली पोर ।।
शीश झुका लो चरण में ।
आओ गुरु की शरण मे।
गुरु से विद्या सीख लो , करो ज्ञान भंडार ।
सिर उनका ऊँचा करो ,बिखरे रंग हजार ।।
जीवन में लाये खुशी ।
मिटे विषाद, मिले हँसी ।।
रिश्ता पावन शिष्य गुरु, हैं सदा बरकरार
आदर जब उनको मिले ,परंपरा साकार ।।
कर्म केपरचम लहरे ।
रंग जिन्दगी में भरे ।।
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Monday 23 September 2019
चाहत नदी की
विधा- दिक्पाल छंद
221 212 2 221 2122
हिम चीर कर चली थी,पथ में नदी अकेली
राहें कठिन बहुत अब, है संग बिन सहेली
थी हिम गिरी सुता वो , मैदान अब बसेरा
अल्हड़ मना उछलती,हर साँझ से सवेरा
जब सोम रस पिलाती , सबको बहुत लुभाती
कल कल ध्वनी सुनाती,मुक्ता नदी लुटाती
अंजान गाँव बहती , बाबुल नहीं बुलाता
निश्छल हृदय भरा है ,प्रीतम बहुत सताता
मुड़ कर न देखती है, अपनी मगन भली वो
पागल पवन मिले जो पिघली नहीं ढली वो
अरमान है मिलन का चलती रही निरंतर
बहती रही घायल पर साथ देते पत्थर
निश्चित डगर इरादा है अब अटल हमारा
जब साथ हो पिया का जीवन सफल हमारा
दिल में बसी रहूँ मैं चाहत यही हिया में
संगम करूँ उन्हीं से सपना वही जिया में।
दोहे (वात्सल्य रस)
कितनी हर्षित मै हुई , पाई जब संतान ।
तुम्हें देख कर उर भरे, बनो नेक इन्सान ।।
पाकर सुख मातृत्व का , मै तो हुई निहाल ।
ममत्व से लोरी भरी, गाती चूमूँ भाल ।।
नींव नही कमजोर हो , सींच रही दिन रात ।
उच्च इमारत तुम बनो ,यही हृदय की बात ।।
लिखो इबारत तुम नई , देना तुम सौगात ।
रौशन करना नाम तुम , मिले नहीं आघात ।।
विशाल बरगद से बनो , टिकें जमीं पर पाँव ।
करूँ भरोसा,मै सदा, दोगे सबको छाँव ।।
बेटी तू ज्योति नयन की, तुझसे चलती साँस ।
धड़कती उर रश्मि ऋचा ,तनुजा मेरी खास ।।
मोहती रश्मि जगत को , हृदय भरे अनुराग ।
ऋचा वेद सी प्रखर है , देख दिल बाग बाग ।।
बोली झरने सी मधुर , तनया तू अनमोल ।
लाती खुशियों की लहर, हृद पट जाती खोल ।।
जीती तुझको देखकर ,निश्छल सी मुस्कान ।
प्रतिमूर्ति दया त्याग की ,तुम मेरी अभिमान ।।
बेटा कोई कम नहीं , श्रेयस उसका नाम ।
करना अब विभेद नहीं ,दोनों एक समान ।।
Sunday 22 September 2019
दोहे ( अद्भुत रस)
आलोकित अभ्र दमके , पूनम की है रात ।
चाँद निशा से मिल रहे , करते मीठी बात ।।
देखो आए गगन में, तारों की बारात ।
हीरे मोती चमकते , नभ दे प्रेमाघात ।।
दुल्हन लगती है निशा,बढा हृदय अनुराग ।
चाँद मिलन को उतरे, पीर गए सब भाग ।।
खिली खिली सी चाँदनी, हर्षित हरसिंगार ।
आई बेला मिलन की , बिछने को तैयार ।।
कितनी इतराई उषा,नैन भरे हैं प्यार ।
बासंती चोला पहन , अरुण करे मनुहार ।।
स्वर्ण किरण के संग रवि ,लेते जब अवतार ।
मोहित हो सूरजमुखी , गई हृदय वो हार ।।
सूरजमुखी युगों खड़ी, रवि से बहु लगाव ।
पी दरश से झूम रही , तृप्त दृग अहो भाग ।।
Saturday 21 September 2019
मोक्ष
सुधाकर के घर आए दिन लड़ाई झगड़े की आवाज आती रहती ।
पड़ोसी भी उसके घर के कलह से परेशान रहते.... ।
सुधाकर अकेला रहता घर के आगे वाले
वाले हिस्से में ।पत्नी बेटा बेटी को
लेकर पीछे वाले हिस्से में ।पति पत्नी की आपस में बनती न थी ।कारण सुबह सुबह वो सतसंग में
चल देती, बच्चे अपने आॅफीस ।सुधाकर अकेले
अकुलाता रहता...। सतसंग के बाद मीना की सखियाँ
आ जाती, .. या वो उसके घर चली जाती ।बच्चे के बड़े होने के बाद आजाद, घुमक्ड़ और गैर जिम्मेदार स्वभाव की वो हो गई ।
पति जब फौज से आते तो दोनों कितने खुश दिखते ।
बच्चों की पढ़ाई और सभी खर्चों के लिए , मोटी रकम।भेजता सुधाकर, या यूँ कहें अपने लिए नाम मात्र रखता,
रिटायर हुआ तो सारे फंड दे दिया पत्नी बच्चों को..।
शुरू में बड़े प्यार से रहते पूरे परिवार । परंतु मीना को
बिन बंधन जीने की आदत हो चली थी... ।
पति की जरूरतें वो नजर अंदाज करने लगी ।घर पर
पति होने के बावजूद , वो चल देती ...।
"ऐसी ही छोटी छोटी बातों ने दोनों के बीच जहर घोल डाला था ....।"
वो अक्सर पीने लगा फिर हल्ला करता । बच्चे को संग ले पत्नी मारती पिटती ।रिश्ते इतने खराब हो गए की एक ही घर दो हिस्से में बँट गए.... ।
खाना के नामपर कुछ भी खा लेता सुधाकर ।धीरे धीरे कमजोर हो गया... ।
अक्सर भूखा रहता , फिर भी पीता ।मीना खाना बनाती बच्चों के लिए ,....।
पति को एक कटोरी भी सब्जी न देती । लोग पूछते तो कहती , लेते नहीं । मेहमान सखी सब खा पीकर
जाते पर पति भूखा सो रहा फिकर नहीं ...।
बच्चों और पत्नी की बेरूखी से सुधाकर ने शराब में खुद को डूबो लिया । फिर चीख चीख कर सबको
कहता मेरे पैसे पर ये लोग ऐस कर रहे , अपने घर में मुझे पराया बना दिया इसने ....
"मरने से पहले सारी प्रापर्टी ट्रस्ट में दान दे दूँगा.... ।"
हल्ला सुनकर बच्चों को संग लेकर मीना ने पति की आज भी लाठी से खूब पिटाई कर डाली ।
सिर फूट गया खून बहने लगे , फिर भी दिल न पिघले ।कुछ ही घंटों में बेजान हो गया सुधाकर ।
लोग निःशब्द हो गए सुनकर । फिर थोड़े देर तक रोने धोने का नाटक हुआ ।
अगले पल पंडित बुलाया गया , पडोसी इकठ्ठे हुए ।सबने
मिलकर सारी तैयारी की , ल्हास ले जाने की बात हुई तो
"मीना और बच्चों ने कहा हरिद्वार ले जाना इन्हें.... "
सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे... ..
"दाने दाने तरसने वाले ... "सुधाकर का मृत शरीर ..आज मोक्ष के लिए हरिद्वार जा रहा था ..."।
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Friday 20 September 2019
दोहे (शांत रस )
उषा हर्ष से लाल है, सूर्य रश्मि विस्तार ।
सबको सुप्रभात कहूँ, नमन करें स्वीकार।
घंटी मंदिर बज रही , मन है प्रभु के द्वार ।
भक्ति भाव उर में जगे, नव्य भाव संचार
मुदित खग वृन्द बाग में , वृक्ष लदे हैं बौर ।
गुलशन भी महका रहा , छाया है नव दौर
पंछी कलरव नभ करे , खिली हुई है धूप
भोर सुहानी द्वार है , लगता दृश्य अनूप ।।
लता कुंज भी झूमते , बहती मलय बहार ।
चहक पिहू कानन रही ,कूकत वो हर बार
दृग लुभाते है किसलय,,द्वार बसंत बहार ।
कोंपल मन में फूटते , बहे प्रेम रस धार ।।
उजले नीले घन गगन , मन को लेते मोह ।
कुसमित कानन देख कर,भटके उर किस खोह ।।
मानव प्रपंच छोड़ दो , कर लो सबसे नेह ।
अभिमान न कोई करो , माटी की यह देह ।।
नि: स्वार्थ बहती नदी ,धरा की बुझी प्यास ।
मांगे बदले में कुछ न , किसी से नहीं आस ।।
नि: स्वार्थ नदी बहती ,धरा की बुझे प्यास ।
बदले में मांगे कुछ न , नहीं किसी से आस ।।
Wednesday 18 September 2019
दोहे (वीर रस )
प्रहरी हो तुम देश के, हमको है ये भान ।
करे न परवाह खुद की , हो सबके अभिमान ।।
शीश चढ़ा ते माँ के चरण, अद्भुत तुम हो वीर ।
प्रेम हृदय जब उमड़ता , नहीं छोड़ते धीर ।।
सैनिक महान पुत्र है, करते रौशन नाम ।
सेवा करते देश का, करे न वो आराम ।।
गर्व करते मात पिता , जब दे सुत बलिदान ।।
कतरा कतरा बहते रक्त,बढ़ जाता सम्मान ।।
छक्के छुड़ाते अरि के , करे फक्र हैं देश ।
घर में घुस कर चीर दे , बदले अपने भेष ।।
सपना सैनिक नैन में, तोड़ू दुश्मन दाँत ।
डाले भारत पर नजर, फाड़ू उसकी आँत ।।
दुष्ट देश को घात दे, कभी नहीं मंजूर ।
तिलक करूँ अरि रक्त से, उर में भरे गरूर ।।
कुर्बानी राष्ट्र पर क्यों, होती है व्यर्थ ।
साँप घरों में पालते , होता बहुत अनर्थ ।।
खट्टे हो दाँत अरि के ,,करना ऐसा काम ।
हिम्मत अरि की नष्ट हो,कर दूँ मैं नाकाम ।।
माँ की सेवा फर्ज है, सबसे पावन धर्म ।
देते उनको कष्ट जो , सबसे बड़ा धर्म ।।