Saturday 5 May 2018

पावस

ग्रीष्म के तपन से आक्रांत धरा
जीव जंतु से लेकर पेड़ पौधे
हो गए बेहाल लू के थपेड़ों से
कराह रहे सब रवि के प्रहार से
कातर नैनों से मेघ को निहार रहे ..

हिय को शांत करे बहे शीतल बयार
सब कोई पवन से मनुहार कर रहे
चिलचिलाती धूप में सब  जल रहे
सूरज जैसे आग के गोले बरसा रहे ..

खेत खलिहान बिन पानी तरस रहे
नदी नाले व गुल, तालाब सूख गए
देख किसान सिर हाथ धर रो रहे
देव इन्द्र से बारिश की विनती कर रहे ..

पावस ऋतु ने ज्यों ही बूँदे बर्षाया
बैचेन जीव को चैन मिल गया
खिल उठी धरा खेत लहलहाया
झरने ने गीत गाया पंछी चहचहा रहे ...

विरहणी गाने लगी है राग मल्हार
पावस की बूँदे प्रेम अगन बढाने लगी
पिया से मिलन को मन मचल रहे
झींगूर ;दादुर व पपीहे की धुन गूँज रहे ..
 
तरूणी कर श्रृंगार जिया है बेकरार
मेघा दे दे संदेश परदेशी सजन को
जी उठा चातक स्वाती के बूँद से
देख घटा घनघोर मोर वन में नाच रहे ..

बिजली चमक रही मेघ गरज रहे
प्रियतम को जैसे वो आमंत्रण दे रहे
पावस ऋतु में जड़ से चैतन तक
प्रेम के बाहुपास में सब जकड़ रहे ..

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