Thursday 16 August 2018

पनाह ( गजल)

काफिया- आ के
रदीफ- देखते हैं

तन्हाईयों के आलम में शमां सा जला के देखते हैं
उसे पाने के ख्वाब में मोम सा पिघला के देखते हैं

कहते हैं इश्क की राह पे जो चल दिए मुड़ते नहीं
मैं परवाना शमा के प्रेम में पागल मिटा के देखते हैं 

बगैर दिलबर के अपना जहान फीका फीका है 
अपने प्रिय से मिलन के मंजर तलाश के देखते हैं

दीदार में जुगनुओं के सुध बुध खो दिया अपना
शमां से आलिंगन में अस्तित्व लुटा के देखते हैं

यूँ तो मिलता नहीं सब को मुक्कमल जहान
 ख्वाहिशों को आज हकीकत बना के देखते हैं

प्रीत के अंजुमन में जग में लेते सब पनाह
अपने बेइन्तहां प्यार को जता के देखते हैं ..

रब ने भी क्या खूब बनाई दिल वालों की बस्ती
हर शै में है रब का इशारा उन्हें मना के देखते हैं

 

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