सुरभित गगन बहुत निखरे
उषा आती जब रवि रथ पर
पंछियों के कलरव मन हरे
दूर पर्वतों पर रश्मि बिखरी
स्वर्ण सा शिखर मन लुभाये
बिखर जाती फिर पन्नो पे
कोई नई कविता..
चीड़, देवदार पर छनकर
आती किरणें जब सुनहली
वादियों में खिलते हैं फूल
मुग्ध मन जाए खुद को भूल
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
मन में उठे कोई हलचल
याद आए कोई पल पल
नैंना बातें करे दर्पण निहारे
छलक जाते प्रीत के प्याले
जज्बात लेने लगे हिलोरें
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
दिल में उमंगें जब मचलने लगती
प्रेम रस की फुहारें बरसने लगती
यादें करने लगी सरगोशियाँ
प्रिय मिलन की आस जगने लगती
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
सिंदुरी शामें जब सजने लगी
जीवन में रंग कई भरने लगे
प्रियतम को मन पुकारने लगे
तन्हाईयाँ हर पल सताने लगी
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
विरहन बन जीना पड़े
वियोग दंश सहना पड़े
प्रेम प्याला हो जब खाली
शूल भरे पथ पर चलना पड़े
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
खुशियाँ चली जाए रूठकर
अरमान रह जाए जब अधूरे
बिखर जाए ख्वाब टूटकर
जिन्दगी में न कोई उम्मीद
न ख्वाहिशों के रंग रहे
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
छा जाते गमों के जब बादल
जीवन को छोड़ जाते उजाले
अंधियारी रातें लगती डरावनी
नैनों के झील में नीर भरे
बिखर जाती फिर पन्नों पे
कोई नई कविता...
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