Friday 18 August 2017

मौत

नन्हें नन्हें पग से चलते रहे
पथिक मिलके बिछुड़ते रहे
राहों में ...
रह गए अकेले खाली हाथ
लेके जीवन के मेले में ..
जाने वाले चले जाते
देकर कई अमिट याद ..
दरवाजे पर खड़ी है मौत
चलता कहाँ किसी को पता ..
कर जाते हतप्रभ और विस्मित ..
ब्रान्डेड कपड़े आधे दर्जन
लाए थे पापा साथ में
अर्धकुंभ नहायेगें और
बेटा बेटी के साथ घूमेंगे
देहरादून में ..
ऐसी मौत पे धीरज का बाँध
टूट ही जाता है ...
दिल में हुक सी उठती है
मन उद्वेलित होकर हहाकर
कर उठता है ..
मेरी कुछ ऐसी ही मनोदशा
सुनकर मौत ..

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