क्षितिज से सागर जब मिलते ..
एक विहंगम दृश्य बन जाता ।
नयनों में कई सारे भाव जगाते..
छवि प्यारी मन को बहुत सुहाती ।
किसने रचा ये मनोरम संसार ?
मन ही मन मैं ये सोचती रहती ।
क्या ऐसा मोहक जग होगा ?
क्षितिज के पार जब हम जाएँगे ।
कौन जानता?
कैसा होगा वो संसार ?
जाने मन में आते कितने ही विचार ?
फिर मन ने कहा ..
तू जी ले पहले इस जहान को ।
खुशियों से भर ले अपने दामन को ।
नभ के पार है जग कैसा?
भला है किसे पता?
जो है सामने उसे जान ले!
जीवन के पल अनमोल !
नेह लगा ले सबसे ..
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