गरीब की बेटी बला होती है आज ये सत्य हकीकत में उजागर हो रहा था ।
रचना की शादी थी मगर न कोई गीत गाना, न ही हर्षोल्लास का वातावरण था ,कारण राजेन्द्र बाबू कहीं से चुराकर (उठाकर)लड़का लाए । धन के अभाव में लडके वाले को दहेज दे कर उपयुक्त वर तलाशना मुश्किल पड़ रहा था ।
विवाह के बेदी में जाती रचना के आँखों से टप टप आँसू गिर रहे थे । ये देख रचना की माँ विह्वल हो गई । मन ही मन वो अपने नसीब को कोसने लगी ,वहाँ उपस्थित
सभी लोग व्यथित हो माँ बेटी के आसूँ पोछने लगे ...
इधर दुल्हा पंडित के द्वारा पढ़ाया कोई भी मंत्र पढ़ ही नहीं रहा था । उपर से दो चार डंडा पड़ता तो एक दो बार मंत्र पढ़ लेता ।खैर किसी तरह विवाह संपन्न हुआ ।सब लोग अपने आराम के व्यवस्था में जुट गए ।
दुल्हा दुल्हन को कोबर घर (दुल्हा दुल्हन का विशेष अलंकृत कमरा) में देकर , बाहर एक पहरेदार बैठा दिया गया ।दुल्हा खिड़की से पहरेदार को झपकी लेते देख फूर्र से भाग गया..
कातर नैनों से रचना देखती ही रह गई ..
अपने को अब वो क्या समझे कुँवारी या दुल्हन .. ये सोच दर्द के कई लकीर उसके पेसानी पे खिंच गया ..
रचना दुल्हा के भागने के कितने महीने तक अपने हाथों से कंगन और गले से माला (शादी के रात पहनाए जाने वाले) उतारी ही नहीं । फल और मीठे भोजन ग्रहण करती रही, इस आस में कि क्या पता दुल्हा को ईश्वर भेज दे और विवाह के अधूरे रस्म पूरे हो जाए ?
मंगल स्नान करने के बाद दुल्हा के साथ नमकीन भोजन करेगी ऐसा उसने मन ही मन प्रण कर चुकी थी..
बेटी को देख राजेन्द्र बाबू को बहुत ग्लानि महसूस हो रहा था ।अज्ञानता में हुई भूल से उसके बेटी की जिन्दगी दुख में डूब चुका था ..
दिन महीने बीतते चले गए पर रचना ने अपना प्रण टूटने न दिया ।इस बीच रचना के पापा कई बार लड़के वालों के घर गए पर वो लोग कुछ सुनने को तैयार नहीं थे ,सभी लोग बहुत ही नाराज थे ।
लगभग ग्यारह महीने बाद रचना की तपस्या रंग लाई, न जाने कैसे अचानक दुल्हा पहुँच गया उसके घर ?
गाँव के सभी लोग राजेन्द्र बाबू के यहाँ उमड़ पड़े ,
जल्दी जल्दी खुशियों के मंगल गान औरतें गाने लगी
बाकी बचे रस्म भी पूरे हुए ।
दुल्हा दुल्हन के साथ गांव के और लोगों के भोज का प्रबंध किया गया ।
रचना की सुनी जीवन में बहारों ने दस्तक दे दिया था ।
अगले ही दिन उसकी विदाई थी ....
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