Monday 4 September 2017

स्निग्धता

ख्वाबों की बीज
मैंने बोयी
अपने खून पसीने से
सहेजती रही
अनमोल खजाने
 की तरह
 प्रीत की स्निग्धता से ..
ख्वाबो की जड़ें 
मजबूत हो ..
बिखरने न पाए
दुनियाँ के बेदर्द फितरतों से ..
इसलिए सींचती रही
खाद पानी से हसरतों को
अपने संवेदनाओं के
 अप्रतिम समर्पित
प्रीत की स्निग्धता से ..
पर वक्त की आँधी
सब तहस नहस न कर दे
 हमारी हसरतें ..
डरती हूँ जमाने की
पैनी निगाहों से ..
कभी कोई आँधी
हमारे बगीया की
शाखाओं को तोड़ने न पाए
उड़ा न डाले फूलों को ..
इसलिए हकीकत के
जमीन पर मजबूती से
जमाए हुए हूँ
अपने पाँव को...

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