Monday 26 March 2018

वो रात

सबके जीवन में ऐसी सुहानी वो रात आती है  जो दो अंजान लोगों को हमेशा के लिए एक बना देते ।एक ही रात में जिन्दगी के मायने बदल जाते ।दो होकर भी .. एक ही सोच ,जरूरत  महत्वाकांक्षा,  गम और खुशी सब कुछ एक दूजे से जुड़े होते ।
 समय बदलने के साथ कई ऐसी रातें आती जो स्मृति पटल पे कब्जा कर लेती ।जेहन से भूलने का नाम ही नहीं लेती ।
पर कुछ ऐसी भी वो रात आती जो जीवन भर आत्मा को तड़पाती है ।मन छटपटाता पर उस दर्द से निकल ही नहीं पाता ..
मेरे जीवन के भी न भूलाने वाली वो रातें हैं ..
बिटिया की शादी की वो रात की खुमारी में डुबी ही थी कि सहसा नियति ने एक ऐसे दर्द भरी वो रात ले आई जिसके गम में आजतक डूबी हूँ ..
  मेरे पापा देहरादून आए थे ..खूब भले चंगे थे ।मेरे घर दो दिन रहे फिर भाई के घर चले गए ।अभी एक दिन ही बीता था ।दूसरे दिन रात 12 बजकर 26 मिनट पर भाभी का फोन आया कि पापा को गैस का प्रोबलेम हो रहा , जिजाजी कोई दवा बता दीजिए।इतने में पापा ने कहा डॉ साहब को बुला लो ..पापा के आज्ञा पे मेरे पति चले गए ।इनका फोन भी छूट गया ..
मैंने सोचा आ जाएँगें ।लेकिन समय बीतता  गया ..इनका कोई पता नहीं ..अब मेरी बैचेनी बढ़ती जा रही थी ..
घर से भाई का फोन आने लगा, सब मुझे पूछ रहे...
मुझे तो कुछ पता ही नहीं .. उस रात की मेरी छटपटाहट, मेरी लाचारी व्यक्त करना समझ से परे..
मैं क्या करूँ? बगल में बेटा जो 12 बजे सोया था । अगले दिन एनवल एक्जाम के फिजिक्स का पेपर था ..कोई भी नहीं जिसको सहायता के लिए पुकारूँ .. रात के 2बज रहे थे।
लगभग तीन बजे रात मेरे भाई का गौरखपुर से फोन आया पापा वेन्टी लेटर पर हैं ..अब तो मैं बहुत ही घबरा गई ..
 भाभी के घर पर भी किसी को कुछ नहीं पता ..
दरअसल मेरे पति पापा को देखते ही बहुत चिंतित हो गए थे ..
पापा को लेके भाभी के साथ बड़े नर्सिंग होम चले गए जहाँ उन्हें "एम आई "होने का डॉ टीम ने घोषित कर दिया था ।
इनके पास फोन तो था नहीं, और फिर डाॅ के निर्देश पर दवाई आदि के इन्तजाम में बिजी हो गए ..
भाभी मेरे भाई जो बाहर थे उनको वहाँ की स्थिति का सब जानकारी देने में लगी थी क्योंकि वो भी डॉ है..
 हमसब को कुछ भी कहने की किसी को फुरसत नहीं हुआ ..
खैर 4बजे पापा ने अंतिम साँस ली ..हमें तब बुलाया गया जब सब कुछ खत्म हो चुका था ..उस दर्द भरी रात की बेचारगी मेरे दिल को आज भी नश्तर चुभा रही...
अगले दिन शाम तक ही सब पहुँचे ।हरिद्वार ले जाते फिर रात हो गई ..हम औरतों को कोई जाने नहीं दे रहा था ,फिर भी जबर्दस्ती हम औरतें चली गई ।उस रात की मेरी व्यथा को वर्णन करना मुमकिन नहीं ।
हम सब रात में ही हरिद्वार घाट पर नहाने माँ को लेके गए ..
वहीं माँ ने जो अपने कंगन उतारा और अपनी गौरी जी को जल में प्रवाहित किया  .. उसे देख मेरे नयनों से गंगा  यमुना की धारा बहने लगी ..लग रहा था कलेजा अब फट जाएगा ।
आज तक मैं उस दृश्य को सोच सोते से जाग जाती हूँ ..
"वो रात" जिसने हम सब को अनाथ बना दिया था ,जीवन में शायद कभी न भूला पाउँगीं ..

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