Wednesday 21 March 2018

बन जाती नई कविता

उषा आती रवि के रथ पर
गगन सुरभित बहुत निखरे
पंछियों के कलरव मन हरे
सोने से पर्वत मन लुभाये
पर्वतों पे जब रश्मि बिखरे ..
चीड़, देवदार पर छनकर
आती किरणें जब सुनहली
वादियों में खिल जाते फूल
मुग्ध मन जाते खुद को भूल
तो पन्नों पे बिखर जाती है
कोई नई कविता...

मन में उठे कोई हलचल
याद आए कोई पल पल
लेने लगे जज्बातें हिलोरें
छलक जाते प्रीत के प्याले
बातें करें नैना दर्पण निहारें
तो पन्नों पे बिखर जाती है
कोई नई कविता...

दिल में उमंगें जब मचलने लगे
प्रेम रस की फुहारें बरसने लगे
करने लगे दिल जब सरगोशियाँ
प्रिय मिलन की आस जगने लगे
तो पन्नों पे बिखर जाती है
कोई नई कविता ....

सिंदुरी शामें जब सजने लगे
जीवन में कई रंग भरने लगे
प्रियतम को मन पुकारने लगे
तन्हाईयाँ डराने लगे रातो में
तो पन्नों पे बिखर जाती है
कोई नई कविता...

विरहन बनकर जीना पड़े
वियोग का दंश सहना पड़े
प्रेम का प्याला हो जब खाली
काँटो भरी राहों से गुजरना पड़े
तो पन्नों पे बिखर जाती है
कोई नई कविता ..

खुशियाँ चली जाए रूठकर
अरमान रह जाए जब अधूरे
बिखर ही जाए सपने सारे
जिन्दगी में न कोई उम्मीद ,
न ख्वाहिशों के रंग ही रहे
तो पन्नों पे बिखर जाती है
कोई नई कविता ...

छा जाते गमों के जब बादल
दामन को छोड़ जाते उजाले
अंधियारी रातें डरावनी लगे
नैनों में झील नीर के भरने लगे
तो पन्नों पे बिखर जाती है
कोई नई कविता ..

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