Thursday 27 September 2018

मुक्ति द्वार

विधा- पियूष वर्ष छंद
10 , 9  यति पर सृजन

प्रेम बिहिन जीवन , का न मोल कभी     1.
स्नेह संबंध का ,   नहीं तोल कभी
कर निसार जीवन,  सकूँ मिले तभी
निःस्वार्थ बलिदान , न हो व्यर्थ कभी

जब सब परेशान,,,,किससे क्या कहें
व्यथा अलग सबका,,पीर किससे कहें
राहें जुदा जुदा,,,,,सभी मस्त खुद में
दे न वक्त किसी को,व्यस्त अपने में

जग में आते सब , बंद कर मुट्ठी ।   2.
जाते मिलने को,  मात्र ही मिट्टी ।।
मोह है बेकार ,    दर्द यहाँ मिले ।
स्वार्थ से बंधे सब,  त्याग कहाँ मिले ।।

प्रभु संग प्रेम हो ,  मुक्ति द्वार  खुले ।   3.
पूज लो उन्हें तो ,  दुख न कभी मिले ।।
राग द्वेष से सदा ,    जब कष्ट मिले ।
मनुज क्यूँ न समझे,  दण्ड अवश्य मिले ।।

कर्म पथ से विमुख न,,,कर जीवन कभी    4.
कर इरादा पक्का,,,,डिगे न पग कभी
रखो मन पे अंकुश, बस चलते रहो
राह कठिन हो पर , तुम बढ़ते रहो

 
 

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