Wednesday 26 September 2018

योग्य डॉ

विधा-आलेख

डाॅ मतलब एक संवेदनशील,सहनशील व जिम्मेदार व्यक्ति । जिनके दिल में दया प्रेम और सहानुभूति भरे होते हैं ।
समाज के भेद भाव व जातिय संकीर्णता से बहुत उपर उठकर उनकी सोच होती है।
हर माँ पापा गोरवान्वित होते जब उनके बच्चे एक योग्य
डाॅ बनते । हलाॅकि डॉक्टरी की पढ़ाई मंहगी और बहुत लम्बी अवधि तक अनवरत शिक्षण कराने वाला कोर्स है,
फिर भी अगर दिल में जज्बा हो तो बच्चे इस क्षेत्र में अपना मुकाम बनाना चाहते हैं ।
डॉ बनने के लिए बारहवीं के बाद आठ साल ( छःसाल एम.बी .बी.एस और दो साल हाउसमेन शीप) तो नितांत आवश्यक है, उसके अतिरिक्त पी .जी.तीन साल (किसी विषय मे स्पेस्लाजेशन) हो तो अति उत्तम ।
डॉ बनके समाज सेवा का दायित्व निभाना और सभी
मरीज से मीठे स्वर में बिना क्रोधित हुए बोलना ,इसका पाठ उन्हें सर्वप्रथम दिया जाता है ।
डॉ बनने के लिए शर्म का त्याग करना बेहद जरूरी है 
ताकि वो अच्छे से सीख सके । खासकर एम .बी.बी.एस
तक उनको सभी विषयों की पढ़ाई करनी पड़ती है । मेडिसिन, सर्जरी गाइनि इत्यादि ।डिलीवरी भी करानी पड़ती है।
जब एक डॉक्टर मरीजों की चिकित्सा करने के लिए रात दिन खड़े होते, समाज के अधिक से अधिक लोगों को
अपनी चिकित्सा से लाभ पहुँचाते ,तो बदले में समाज भी
उन्हें बेहद सम्मान और प्रेम देते हैं ।
एक डॉ को आलस्य त्याग कर चौबीस घंटे में कभी भी अपनी सेवा देने के लिए खड़ा होना पड़ता हैं । मर्यादा
सीमा में रहकर अपनी पेशे को ऊँचाई देना हर डाॅक्टर के
कर्तव्य हैं, और वो ऐसा करते भी हैं । आखिर डाॅक्टर को लोग भगवान तक का दर्जा देते हैं... इसका निर्वहन उन्हें अवश्य करना चाहिए ।
परंतु डॉक्टर भगवान नहीं हैं इस बात से कभी भी इन्कार नहीं किया जा सकता । वो सिर्फ कोशिश कर सकते हैं  जान बचाने का काम तो ईश्वर के हाथ में है ये तो उपरवाले के उपर निर्भर है, ये तो वही जानते हैं ।
किसे जीना या मरना है इसका फैसला वही करते हैं ।
डॉ भी एक इसांन है उनकी भी जिन्दगी है ,वो भी
कभी अवकाश ले सकते हैं । गुस्से में आकर बात बात में डॉ के साथ हाथापाई करना या नुकसान पहुँचाने का हक कभी भी मरीजों को नहीं मिल सकता ।इस जघन्य अपराध से उन्हें बचना चाहिए ।
अभी दो साल पहले मेरे पति के मित्र को ड्यूटी के समय ही गोली मार दिया गया, सिर्फ इसलिए कि वो
उस हत्यारे के बेटा को बचा नहीं पाए थे ।
आज उनका परिवार उजड़ गया है । दोनों बेटे के साथ भाभीजी अकेली रह गई..... ।
     अपवाद हर क्षेत्र में है। कई डाॅक्टर इस पेशे को शर्मशार कर रहें हैं । रूपये के लालच के लिए कई ऐसे
कार्य कर रहे, जैसे मरीज से अधिक फीस लेना या शरीर अंगों को निकाल कर बेचना..ये बहुत ही शर्मनाक और निंदनीय कार्य है।जिसके लिए उनकी भर्त्सना करना जायज है । परंतु सभी डॉक्टर ऐसे नहीं होते हैं ।
   चिकित्सा जगत में झोला छाप डॉक्टर की संख्या
बढ़ती जा रही है, जो अधिक चिन्तनीय विषय है।भोले भाले लोग उनके चक्कर में फंसकर अपना नुकसान कर  लेते हैं ।सबको ऐसे फर्जी डिग्री धारक से बचना चाहिए ।
सरकार को भी ऐसे फर्जी डिग्री को निरस्त कर ,उनके
क्लिनिक को तत्काल बंद करने का उपाय करनी चाहिए ।
     मैं एक डाॅक्टर की पत्नी ,डॉ की माँ, डॉ की बहन और भाभी हूँ । वे सभी अच्छे से अपने पेशे का निर्वहन कर
रहे हैं । मुझे फक्र है कि मेरे सपने हकीकत के रूप में मेरे आँखों के सामने मौजूद है। पैसे ज्यादा हो न हो पर
सम्मानित  जिन्दगी हो ये हर किसी की ख्वाहिश होती है ,सो ईश्वर की कृपा से है,इसके लिए उपरवाले को लाखों शुक्रिया ।
हलाॅकि इसके लिए मुझे बहुत त्याग और तपस्या करनी
पडी है । डॉ साहब के गैर मौजूदगी में अकेले बहुत से कर्तव्यों को निभाना पड़ा । बच्चों के केरियर के वजह से एकाकी जीवन भी बितानी पड़ गई । अपनी नौकरी को बीच में ही छोड़ना पड़ा ....।
परंतु मुझे उनपर गर्व है... !!
मुझे याद है मेरे पापा जो खुद यूनिवर्सिटी प्रोफेसर (बाद में प्रिसिंपल) होने के बावजूद मेरी शादी डॉ से और बच्चों
को डॉ ही बनाना उनकी एकमात्र ख्वाहिश थी ,जो पूरी हुई....।
और अंत में मैं यही कहना चाहती कि किसी चिकित्सक
को किसी के जीवन से खेलने का कोई हक नहीं, जो उनके वश में न हो वो लालच किए बिना रोगी को उपयुक्त चिकित्सा के लिए अपने से अधिक अनुभवी डॉक्टर के
पास भेज दे। ताकि रोगी का जीवन और रूपये दोनों बर्बाद होने से बचे ।

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