विधा:- गीत (16/12 सार ललित छंद)
#मुखड़ा
जीवन के धूप छाँव में है, आस प्रभु बस आपका
विसंगतियों मे हिम्मत रहे, बेबस कृषक देश का
#अंतरा
नित्य बहाता स्वेद कृषक जब,,मेहनत रंग लाती
नम नयनों में तभी खुशी की, तरंगें झिलमिलाती
फसल लहलहाये खेतों में, खिलता पुष्प हृदय का
जीवन के धूप छाँव में है ,, आस प्रभु बस आपका
सुखद पल का एहसास लिए, निरखू विदा हो रहा
अपलक नभ को निहारे दुआ ,, उसे मानो दे रहा
आह सुता क्यूँ रो रही पीर ,,दिल चीर गया उसका
जीवन के धूप छाँव में है...
फसल कृषक के पशु नष्ट करे,,दृग से अश्रु बरसता
चले उपर वाले की लाठी ,,,मूक मनु सब देखता
किस्मत का मारा है निरखू,,,हृद में तुफान उसका
जीवन के धूप छाँव में है...
बेटी दहेज से दुखी, फसल,,लील किया जब पशु ने
व्यथित हृद नभ निहारे,क्या खता,,आज हुई अंजाने
जीवन में शोक अशोक साथ , पैगाम था खुशी का
जीवन के धूप छाँव....
चिट्ठी मिली अफसर पूत बना, छलका नीर खुशी का
पुत्र करे साकार स्वप्न आस ,,बंध गए निरखू के
झोली भरे ईश निर्धन की ,, कौन उन्हें समझ सका
जीवन के धूप छाँव में है,, आस प्रभु बस आपका
विसंगतियों में हिम्मत रहे ,,बेबस कृषक देश का
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