Wednesday 11 July 2018

बदलते वक्त

गृहप्रवेश पे सारे ही रिश्तेदार आए हुए हैं ।आज बड़ी ही रौनक है रिया और रूपक के घर में ।हवन और पूजन के बाद लोगों के भोजन का निगरानी पति पत्नी स्वयं कर रहे हैं ।वे लोग बहुत खुश खुश हैं आज ...क्योंकि सपने का घरौंदा आखिर  तैयार जो हो गया ...।
 
सास - ससुर व भाई- बहनें रिया से चाशनी में डूबो डूबो कर घर के डिजाइन व नक्से की तारीफ करते ही जा रहे ..परंतु रिया और रूपक बिना टिप्पणी दिए, उदासीन होके अनसूनी कर देते एक एक बातें ..."सिर्फ फीकी मुस्कान लिए कनखियों से देख लेते उन्हें ...।"

"बहुत सी बातें उमड़ घुमड़ रही थी उनके दिलों में, पर उसे दुहराकर आज के शुभ मुहूर्त के आनंद को वो जाया न करना चाहते हैं ... ।"

पर कटु यादें, तो मन मस्तिष्क में चिपक ही जाता है ..लाख कोशिशें कर लो ! वो पीछा ही नहीं छोड़ते... !
पति पत्नी को याद आने लगा वो दिन ,जब एक ही शहर में   देवर के घर महिनों रहकर माँ बाबूजी लौट जाते ....उनके घर
आना मुनासिब न समझते...।

"कारण किराये के घर में रहने में अशोकर्य लगता उन्हे ...।"

 जबकि रिया और रूपक उनके सेवा में कोई कोताही नहीं बरतते ..। उनके खान पान दवाइयों पर विशेष ध्यान देते ... ।
शाम को रूपक ड्यूटी से आते ही वाॅक पर ले जाते ,परन्तु एक दो दिन बाद ही माँ बाबूजी रहकर चले जाते... ।

देवर के सरकारी घरों की आफिसरी शान ही उन्हें सुहाता..। ननदें ननदोई व बाकी भाई बहनों का हाल भी
क्रमशः ऐसा ही था ...।

 रिया और रूपक आज बदलते वक्त के पदचाप सुन, अपने पाँव को जमीन पर जमाए हुए है ...। रिश्ते के बाजार हर इन्सान अकेला होता,  सिर्फ अपना धैर्य व संतोष का संबल होता है...।

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