Monday 16 July 2018

सुकून

किसी के आरजू में दीवाना हुआ मन
खोके अपनी चैन बेसुध हुआ मन
कर दिया उनके हवाले अपना जीवन 
मुहब्बत में लुट के मिटा दी मैं पहचान ..

लूट के जहां मेरा वो हैं बने अंजान
कभी याद न करता बेखबर हैं बने
बड़े ही निष्ठुर हैं मेरे बेदर्दी साजन
कभी लुभाता नहीं उन्हें मौसम सुहाना ..

मुश्किल है जीना अब उनके बिना
 मेरा सातो जनम उनपे ही कुर्बान
 एक बार कर ले मेरे प्रेम पे यकीन
भर दूँ खुशियों से मैं उनका दामन  ...

नसीबों की बात है प्रियतम से मिलना
बिन पिया अमावस लगे पूनम की चाँदनी
विरहा की मारी अब मैं भटकूँ वन वन
वो ले ले सुधी रूह को मिल जाए सुकून



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