आ ही गई वो रात सलोनी
बजने लगी आंगन में शहनाई
मन मयूर होके मगन लगे झूमने
नैनों में छाने लगी सतरंगी सपने
मीठी मीठी मिलन की चुभन
मचलने लगी दिलों में धड़कनें
पिया से अंखिया मिलाने के दिन
आ गए सखी री ..
आंगन में मंड़प अब सजने लगे
माँ दुल्हा को परीक्षण कर ले आई
दुल्हन बन सब सखियों के संग
वरमाला पिया को डाल लजा गई
हर्षोल्लास में पुष्पों की वर्षा होने लगी
शहनाई मधुर तान छेड़ने लगी
पिया से अंखिया मिलाने के दिन
आ गए सखी री ..
बाबा की दुलारी परायी हो गई
नैहर की दहलीज छुट जाएगी
बचपन के अल्हड़पन छोड़
फर्ज और जिम्मेदारियों में
मासूमियत कहीं दब जाएगी
दस्तूर ए जमाने की तकाजा
विदाई की विरह सहनी ही पड़ती ..
हर बाबुल के आंगन शहनाई
बजने की खुशियाँ जिया हर्षाती ..
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