Tuesday 24 July 2018

मुक्ति / उषा झा

इस बार गाँव गई तो पता चला, दयालु को चौथी बेटी हो गई ।
हर किसी के जुबान पे हाय हाय सुनने को मिल रहा था । सब यही कहता, वो अनपढ़ एक खेती के भरोसे कैसे बेटियों को पढ़ायेगा.. ? दहेज के लिए धन कहाँ से लाएगा.. ?

"भगवान ने उसके साथ बड़ा अन्याय किया... !...एक बेटा देते तो उनका क्या जाता ..?"

"मुझे ये सब सुनकर बहुत गुस्सा आया.. ! मैंने पति पत्नी को समझाने का मन बनाया ...। "

"अगले ही दिन पहँच गई उसके घर ! दयालु ने पैर छुआ, फिर दौड़कर अपने पत्नी रमा को बुलाया, उसने भी पैर छुआ ..मैंने भी घझउसे गले लगाकर , स्वास्थ्य वगैरह की जानकारी ली ।"

मैं दयालु से बात कर ही रही थी कि ...कहीं से लाल काकी आ गयी । लाल काकी के पैर मैंने छूआ , फिर वो अपनी बीमारियों का चर्चा करने लगी । इतने में रमा चाय बनाके ले आई ...।
अब जो कहने उसके घर गई थी वो कहना शुरू किया ...।

"मैंने रमा और दयालु से कहा ! बहुत नासमझी तुमलोगों ने दिखा दी ..!  बेटा के चक्कर में कितने बेटी पैदा करोगे ..?"

दयालु से कहा डॉ के पास जाकर बीवी का लेप्रोस्काॅपिक आपरेशन करा लो, मामूली खर्चों में निबट जाओगे ! रमा को अधिक पीड़ा भी नहीं होगी,एक दो दिन में स्वस्थ हो जाएगी ।

"लाल काकी सब सुन रही थी,वो बीच में ही बोल पड़ी..
बाकी सब तो ठीक पर बिन पुत्र के मुक्ति कैसे मिलेगी ..?"

"जल देने वाला न हो तो भूत बनके पेड़ पर लटकना पड़ेगा ।"

अचानक मेरी आवाज तल्ख हो गई ....मोक्ष के अंधविश्वास में  पूरे परिवार तिल तल कर मरे... ! सिर्फ जलदाता के लिए..!
  ये कैसा पंथ..... ? कैसा धर्म....?
"जहाँ बेटी उचित लालन पालन व शिक्षा को तरसे ....!
 मरने के बाद की बात किसे पता ..?"

 

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