विधा-- दोहा /चौपाई
कुसुमाकर के तीर नित , करे प्रीत बौछार ।
मन उमंग छाने लगा, लूटा हृदय करार ।।
धरती लेती है अंगड़ाई
वसंत ऋतु मधु रस बरसाई
अति प्रीती वसुधा पर छाई
रोम रोम महि के पुलकाई
फूली सरसों पीली पीली
दिल में पलती आस सजीली
छाई खेतों में हरियाली
बाली गेहूँ की झुक डाली
अमिया में मंजर भर आई
नेह गंध मन को बहकाई
रुत हसीन रंगीन नजारे
विरही मन भी सजन पुकारे
भरमाया ऋतुराज मन , नयी नयी करतूत ।
खिले सभी दिल हर्ष से,,लदे वृक्ष शहतूत।।
खिले पुष्प चहुँ ओर घनेरे
विरहन हृद सुधियों के डेरे ।।
तरुण वृन्द की बढ़त है जारी,
कुहुक लगे कोकिल की प्यारी
द्वय दृग नम मन हुआ फकीरा
बजते हैं ढप ढोल मँजीरा
खिलते उपवन - उपवन टेसू
उड़ते हैं गोरी के गेसू
मैल दिलों के लगे उतरने
रंग प्रीति का लागा चढ़ने
लाई होली खुशियाँ सारी
रंगी पिया ने काया सारी
बगिया में गुल खिल गये ,भ्रमर दिल गया डोल ।
दिल होली में मिल गये ,नाते हैं अनमोल ।।
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