विधा --गीत
कहर ढाता सारा ज़माना ,,,जब लगे दिल की लगी
बुझे न आँच प्रीत की,सांवरी, सपने सजाने लगी
जब नयनों ने इजहार किया,,, हलचल हुई दिलों में
सजने लगे ख्वाब ,उम्मीदें ,,, जवां हुई नैनों में
प्रेम रोग जब लगे किसी को,, हार सभी दिल जाता
पी लिया विष मीरा ने, प्रेमी ,, जिन्दगी वार जाता
जकड़ ले जंजीरों में फिर भी, जख्म अब भाने लगी
बुझे न आँच ...
नश्तर सी चुभ रही दिलों पे ,, कटार विष वाणों से
बंदिशें न रोक सके उन्हें ,,,, डरते फरेबियों से
छल प्रपंच न हो, रिश्ते भी,,,दिल में आबाद होता
बिन स्वार्थों का प्रेम हो जब ,, जग में अमर हो जाता
अब जीना मरना संग उनके ,,वो मुस्कुराने लगी
बुझे न आँच ...
कोई मिटा दे चाहे हस्ती ,,रूह कभी न मर सकता
मिलना बिछुड़ना रीत जग की, जिन्दा मुहब्बत रहता
दिलों में काँटे चुभो दो,तोड़,,,,सके न डोर प्रीत के
शाश्वत सत्य सब कोई मान,,,प्रेम आधार जग के
राह जो ठान ले मुड़े नहीं ,,,,प्रेम पथ चलने लगी
बुझे न आँच प्रीत की, बावरी,,सपने सजाने लगी
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