Tuesday 5 February 2019

बुढापा

विधा--  छंद मुक्त कविता

यौवन में है विचित्र नशा
मुहब्बत में दिल आशना
नैनों में आसक्ति का चश्मा
दिखता है रंगीन ज़माना

नेह सिक्त उर में प्रेमालाप
देह गंध से मदमाता यौवन
ऋतु ने छोड़ा प्रीत का चाप
करे मकरंद पुष्प अधर पान

हृदय द्व भी मचला करते
नर्म साँसों के आवेग बढ़े
प्रेम सुधा को सब तरसते
प्रीतम के मूरत दिल में गढ़े

उतार चढ़ाव चढ़े जीवन के
नेह संग व्यतीत करे दिन रैन
ख्वाबों के रंग भरे जब पलकें
सजन के राह निहारा करे नैन

जब ढले उम्र सिसके कोने में
पीर किसे दिखे साथी न संग में
एक एक क्षण जीना हुआ दूभर
कैसे जिए अब हम अकेलेपन में

बुढ़ापा बन गया है अब सजा
बुजुर्गों को देख कर हँसने वाले
उम्र ढ़लने के बाद ही पता चले
रोने के लिए कंधा उन्हें न मिले

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