Wednesday 19 July 2017

नारी

मत कहो अबला नारी
बनने दो सबला नारी ।।
हूँ न मैं शो पीस घरों की
न विलासिता की मूर्ति  ।।
 मैं नहीं बेजुनबान गुड़िया
  सीने में भी मेरे दिल धड़कता ।।
 कुचलो न कोई अरमानों को
  रौंदो न मेरे ख्वाबो को ।।
  खुद से जीने का हक है हमें
   सबके खातिर जीती रहती ।।
    मैं एक जीती जागती नारी
    हूँ नहीं कोई मिट्टी की मूरत ।।
    नारी स्नेह और सम्मान की भूखी
     घर खुशियों से सिंचत करती ।।
    बच्चों और परिवार की खातीर
    हर नारी अपनी जान लगाती ।।
     नारी के उत्थान से ही होता
      हर युग में समाज की उन्नति ।।
 

  

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