Saturday 29 July 2017

कृत्घन

सामर्थ्य और रूतवा हो जब तक
बेटा और बहू आदर भी खूब करते हैं ।
अपने घर का गृह प्रवेश भी उन्हीं से
करा कर,घर का मालिक होने का
एहसास कराते हैं ।
जैसे ही विपदा पड़ती उनपर, दो में से
एक रह जाते तो अपने  घर में एक दिन
भी रखना गवारा लगता ।
कुछ दिन मेहमान बनाते फिर मुँह
टेढा कर घर से दूर भागते ।
कोई माने न माने बुजुर्गों का यही
हाल होता ।
कुछ बच्चे ऐसे ही होते हैं, कृत्घनता का
नंगा रूप दिखाते ।
जिस बेटा को "मनता "मांग कर पैदा
करते ..
उसकी बीबी बीते दिनों की कमियों को
गिनाती ।
एक विनतीयाँ अभिभावकों से मेरी
करो न विभेद बेटी बेटे में ..
मन से निकाल दे वो कि बेटी के घर
"ना पानी पीते "..
ये सब प्रपंच समाजिक कुरीतियों की
बेटी ही बेटा से बढ़कर फर्ज निभाती ।

 

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