बचपन में एक खेल
खेला करती थी
जिसमें जीवन के
मूल मंत्र छूपा था ..
एक बच्चे के कान में
कुछ शब्द बोलना होता
फिर वही शब्द दूसरे ,
तीसरे ,चौथे व पाँचवें
इस तरह सारे बच्चे तक
वही शब्द कान में
बोला जाता ..
अंतिम बच्चे से जब
वही शब्द पूँछा जाता ..
तो बच्चे जो कुछ बोलते
सुन के सब जोर से हँस देते
बच्चे को समझ में न आता
आखिर ये क्यों हँसते ?
दरअसल एक कान से
दूसरे कान तक वो
शब्द ही बदल गए थे ..
कहने का मतलब
कभी किसी के
कानों सुनी बातों
पे करो न यकिन
औरों तक पहुंचते
बातें हो जाती अर्थहीन ..
इस खेल के पीछे
छूपा था यही सार
एक ही शब्द कई बार
अलग अलग लोगों तक
पहुँचते ही अर्थ और भाव
खो देते ...
कभी कभी बातें पूर्णतः
बदल ही जाती..
Monday 20 November 2017
शब्दों की नियती
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