Thursday 9 November 2017

गिद्ध दृष्टि

जिन्दगी बन जाता मजाक
वक्त जब कुछ इस कदर
दो राहों पे खड़ा करे लाके
मुफलिसी सबब बन जाती
खुद के तमाशा का ..

हर ओर दिखता गिद्ध दृष्टि
खा जाने वाली निगाहें लोगों की 
जो चुभ जाता अंदर तक
एक नंगा सच समाज का ..

जग में निः सहाय अबला का
 होता न कोई भी सहायक
गरीबी लाचारी में देते न साथ
उठाते लोग फायदा दुखिया का ..

यूँ तो बनते हैं लोग सिद्धांतिक
 बड़ी बड़ी दलिलें देते मानवता का
तो चेहरे से नकाब ही निकल जाता
जब अवसर आता कुछ करने का..

गजब रीत होता संसार का
जब हो परिपूर्ण हर ओर से
तो घिरे होते हरदम अपनों से
सब छोड़ देते साथ पड़ती मार वक्त का
समाज के दोहरी मानसिकता गजब का..

 

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