जाड़े की जमा देने वाली
रातों में सड़क के किनारे वो
बच्चा अपनी पतली कमीज
खींच खींच के कान व
छाती को भींच रहा था ..
बर्फिली हवा के झोंके
अजीब सी कपकपी
तन को ठिठुरा रही थी..
हड्डियों को गलाने वाली
सर्द रातों में वो बच्चा
सड़क के किनारे ही
अपने सोने का जुगाड़
कर रहा था ..
मैं अपने गाड़ी के शीशे को
नीचे सरका कर भींगी पलकों
से अपलक देखने लगी उस
बच्चे को ..
ये स्ट्रीट चिल्ड्रेन की जिन्दगी
कितने मुसिबत से भरा होता
जहाँ खाने का दो रोटी भी
मुश्किल से ही मिलता
तो और सुख साधन कहाँ
से मिलता होगा उसको ..
ये सोच मन ही मन कोसने
लगी उसके नसीब को ..
नियति ने कैसा मजाक किया
जो नाजुक कोमल कपोल का
जड़ ही काट दिया बचपन में ..
मुहताज बन गया वो राहगीरों के
प्यार और स्नेह से संवारने के उम्र में..
ये सब सोच के मेरे कदम अनायास
ही बढ़ गए उसके ओर ..
Tuesday 28 November 2017
स्ट्रीट चिल्ड्रेन
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment