उठते गिरते उन लहरों
के तरह ..
विचारों का वो स्पन्दन
मन झकझोर कर रख देता ..
कर देता बैचेन ..
न जाने कौन सी कसक
दिल पर रह रह के चोट
पहुँचाती ..
तुम्हारे अजीबोगरीब बेगानेपन
मेरे जज्बातों को छू जाता .
कभी लगता हम एक दूसरे को
बरसों से जानते पहँचानते ..
कभी लगता अब भी बाकी है
दिल के कई सारे गिरह खुलने को ..
कई सारे पसंद नापसंद अलग
हो सकते हैं ..
पर एक दूसरे के पसंद को
अहमियत देना भी जरूरी होता ..
पर तुम अपनी पसंद को
हमेशा तरजीह देते ..
बेसक हम दोनों एक दूजे में
ऐसे घुल गए हैं ..
जैसे मिश्री और पानी
घुलकर एक हो जाते ..
हमारे ख्वाब एक है,
एक दूजे के लिए बेफिक्र भी रहते ..
फिर क्यों नहीं मेरे जज्बातों की
थोड़ी सी कद्र करते ..
एक दूसरे के अस्तित्व स्वीकार्य से ही
प्रीत की उचाँईयाँ निर्भर करती ..
प्रेम में एक दूसरे को गिराने में नहीं
संभालना में है निहीत ...
Thursday 30 November 2017
स्पन्दन
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