विधा - गीत
नया दौर ने बचपन छीना, बदले खेल खिलौने
इन्टर नेट पर गेम खेले,, मासुमियत लगे खोने
लुका छिपी,गिल्ली डंडा पता ,,कहाँ!खो खो किसी को
मैदान पर खेलों के लुफ्त,,,से बंचित अब अनेकों
बच्चों के खेल बदल गए न,,,,,वो टायर भगा रहा
देखे बैठे बैठे जहान,,,,घरों से न निकल रहा
प्रकृति के संग जो रहते हैं ,,नहीं पड़े कभी रोने
इन्टर नेट पर गेम ...
खेलता नहीं अब कोई भी,,सब फोन के दिवाने
लद गए दिन सभी बच्चों के ,, बहाने के वो पसीने
पढ़ाई में मन नहीं लगता,,, बहाने रोज बनता
रोते हैं माँ बाप देखकर,,,मंजिल न उसका दिखता
छोड़ दे अपनी ये आदतें ,, हमें ही हैं रोकने
इन्टरनेट पर गेम ..
किताबों की भीड़ में खोये ,सिलेबस बहुत भारी
माँ बाप की बढ़ती आकांक्षा,,,पिसते बारी बारी
वक्त कम है बच्चों के लिए ,,,व्यस्त सभी अभिभावक
जीवन के तेज रफ्तार ही,,आज बना है बाधक
परिस्थिति के दास मनुज सभी,,,वही बनाते बौने
इन्टरनेट पर गेम ...
राॅक गीत सुनके खुश होते,,,भाये मैगी खाने
कानों में आई पाट लगा,, शौक लगे फरमाने
शिक्षा जरूरी है जीवन में ,,यही तो सिखाने हैं
सुंदर भविष्य के लिए बच्चों ,, पे अंकुश जरूरी है
अभिभावकों को संस्कार के,,बीज अब है बोने ...
इन्टरनेटपर गेम खेले ...
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