विधा- गीत
माँ के गर्भ से निकली लाडो ,, सभी ने ममता लुटाई
प्यार के छाँव जीवन संवरा ,,, नारी हर घर मुस्काई
पुत्री बन घर पे राज करती , मोरनी सी वो नाचती
हर सुख मिले जिसकी हकदार,,नाजों नखरे से पलती
मात पिता बलैया लेते ,,,,सुता को निहारा करते
एक दिन वो चली जाएगी ,,,,सोच के ही सिहर उठते
हृद रो रहा, पुत्री को माता ,, करे कैसे अब पराई
प्यार के छाँव में ....
पुत्र ब्याह की बात जभी चले,,,,लालच ने घेरा डाला
मोटी रकम अब ऐंठने को , किया सोच के, दिल काला
बन गई अब वो पक्की सास ,,, समझे न बेटी बहू को
तरसाती है प्रेम प्यार को ,,, रूलाती बस बहू को
जब हक न मिले बहू को , सास ,,को माँ कहाँ समझ पाई
प्यार के छाँव में ...
करे पुत्री बन आज्ञा पालन ,, माँ पिता भगवान होता
बहू बन फर्ज वो भूल जाती,,सास का तभी दिल रोता फूटी आँख न भावे ननदें ,, भूल जाती वो बहन थी
मायका उसे लगता प्यारा,,क्यों ननदें से बजती थी
नारी नारी की दुश्मन! क्यों ? नेह उनमें न पनप पाई
प्यार के छाँव में ....
सास माँ समान ननद बहन,,,तो रिश्ते से मधु टपके
माँ बन स्नेह दे बहू को फिर,,, बन ले ससुराल, मायके
करे न बैर एक दूजे से,,,करे न मनमानी मन की
प्रेम दया की मूरत नारी,,,जननी है इस धरती की
त्याग की मूरत नारी ! तुम्हीं, प्रीत की रीत सिखलाई
प्यार के छाँव में ...
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