विधा-कविता
मन की तपन से झुलस रहा तन बदन
वेदना की ज्वाला में जल रहा है जीवन
सूख रहा है गला तृषित है मेरा रोम रोम
प्यास ऐसी जगी छटपटा रहा अब प्राण
काश तुम आओ नेह की सर्द फुहार बन...
जाने कब से चली जा रही रेत की तपन पर
ठंडी छाँव की आस में भटक रही इधर उधर
हर ओर घोर निराशा, रेगिस्तान बना जीवन
आस है की, आओगे जल्द ही बर्फीली रैन बन
हर लोगे सब संताप,फिर पिघलने लगेगा मन ...
किसी के जीवन को आसान होता दहकाना
जल जल कर जीना, मुश्किल होता है सहना
दहन हो रही प्रीत, भावनाएँ हो रही हैं दफन
प्रेम का कोहरा बरसा ! आ बनके पोष की भोर
पुलकित कर हृदय, आओ गुलाबी सर्दी लेकर
स्नेह का लिहाफ ओढकर खो जाए स्वप्न में हम
ठिठुराने वाली ठंड में भी मिले अजीब सा सुकून
पूर्ण हो मनोकामना पी लें प्रीत का अमृत सोम
पाकर तुम्हारे प्रेम से तृप्त हो जाएगा रोम रोम
सर्द लहर में भी प्रेम ऊष्मा से खिले मन उपवन
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