Thursday 17 January 2019

मन मरुस्थल

मुँह मोड़ लिए जब सजन, हुई बहुत हैरान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

जिन्दगी बिखर गई रेत सा
कोई नहीं लगे अपना सा 
चौ राह छोड़ क्यों चले गए
हवाओं का रूख विपरीत आज
बेसुरे सारे दिल के साज

ढूंढ रहे मरुस्थल में  , हम कदमों के निशान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

पग पग पे जीवन छलता है
कोई नहीं कहीं दिखता है
सहरा भी मन भरमाता है
दूर दूर तक  है  सूनापन
करूँ किसपर कैसे यकीन

अस्तित्व को तुमसे ही , मिली नई पहचान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

तुमने मुझे कहीं का न छोड़ा
 बेरूखी ने दिल है तोड़ा
मृगतृष्णा की चाह ने छला
 सितम तूने जो ऐसा ढ़ाया
 दिल मेरा फिर संभल न पाया

एक डगर चलकर पिया , थी तुमसे अंजान
तुझ बिन जिन्दगी मेरा , बन गया रेगिस्तान

गर्म हवाओं से दहकता तन
मन मरुस्थल में चले आँधियाँ
रेत में दबी लम्हों की दास्तान
उग गई जख्मों की झाड़ियाँ
सिंचित कर इसे नेह बूँद बन

रीतेपन के रेत बहे दृग ,, से, प्रीत दो प्रतिदान 
तुझ बिन जिन्दगी मेरा,,,बन गया रेगिस्तान

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