Thursday 31 January 2019

शबनमी चाहत

विधा-- कुकुभ छंद

विषय - प्रेम गीत


विधा-- कुकुभ छंद


सर्दी से ठिठुर रहे तन मन,  प्रीत ऊष्मा हृद

तपाए ।

लुभा रही गुनगुनी धूप ये, नर्म एहसास जगाए ।।


रंग बिरंगे पुष्म माल को,,,धरा पहन कर मुस्काई ।

लेकर बहार सर्दी आयी,,भौरों ने धूम मचाई। 

रस चखने को छुपा पंखुड़ी,सौरभ तन मन ललचाए ।

फूट रहे कोंपल मधुबन में,,,रूह फिजा नित महकाए ।

सर्दी से ठिठुर रहे तन...

गेंदा, गुलदाउदी चमेली, सजी हुई सी बगियां है।

फूल गई है पीली सरसों  , चहक रही उर कलियां है ।।

चूम रहा हरशृंगार मही,गुलशन के मन  ललचाए।। 

धवल वसन में ढ़के  शिखर हैं,,,नैनों को दृश्य लुभाए।

सर्दी से ठिठुर रहे ...

मखमली दूब से सजी ओस शीतल नयन हमारे ।

तितली सी इठलाती सजनी, सजना के राह निहारे ।।

प्रीत खिली है हर बगिया में,जड़ चेतन मन मदमाए ।।

छुपा रश्मियों को रवि लेकर, रजाई में कामना ।

सर्दी से ठिठुर रहे तन ....।

शीतल रजनी भी महक उठी,, निशि नित उत्सवी नबाबी  ।

दिल खिलने लगे प्रेमियों के ,,दिन होने लगे गुलाबी ।।

कसमें वादे करे प्यार में,ख्वाबों के मौसम आए ।

पिय स्मित मनुहार शरद ऋतु में, अंतस् को बहुत लुभाए ।।ठिठुर रहे सर्दी से  तन मन,प्रीत उष्मा हृद तपाए ।।

प्रो उषा झा रेणु 

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