विधा- कविता
गगन में आज उड़ चला मन
शोख चंचल शीतल पवन संग
भरने लगा अरमानों के उड़ान
पंछियों के संग वो चहकने लगा
नभ को छुने को मचलने लगा
हो कर मदमस्त बहकने लगा
चमकीले उजले बादल सुनहले
नीले अम्बर पे मोती बिखरे जैसे
देख चकित नयनाभिराम दृश्य
मन मना रहा आजादी का जश्न
महकते लहराते पवन संग मदहोश
तारे के संग वो आँख मिचौली खेले
चाँद की रेशमी किरणों को पाने
हिरनी बन मन भर रहा कुलाँचे
लुका छिपी खेले वो चाँद के संग
संगमरमरी श्वेत चाँदनी रातों में
चाँद इठला रहा झिलमिल तारों में
शीतल हो गया मन महताब के संग
अरमां हो गए पूरे चाँद के पनाह में
दूर कहीं खेतों में उल्का पिन्ड गिरा
बिजली जोरों की कड़कने लगी
गरजने लगे बादल थर्रा गई धरा
छुप गया चाँद रात के आँचल में
सूनापन लिए मन फिर लौट चला
धरा पे परकटे पंछी की तरह गिरा
अधूरी हसरतों की पोटली लेकर
आ गया वो फिर अपनी ही खोली में ..
No comments:
Post a Comment