Sunday 20 January 2019

बूँदें जब बरसी

विधा- कविता

धानी चुनर पहन धरा मुस्काई
प्यासी धरा की अगन बुझाई

देखो कैसे झूम रही है आसमां
छा रही मुझ मे अजब सी नशा
आ गए  देखो प्रणय के मौसम
बन कर बावरी हो गई मदहोश
पुलकित हैं जैसे मेरे रोम रोम

खग पशु मानव में नेह जगाई
थानी चुनर पहन धरा ....

प्रेमरस में भींगे मेरा तन मन
जाने कहाँ गए वो चितचोर
वसुधा के भी गए रूप निखर
सुधा वृष्टि से तृप्त प्यासे उर
गूँज रहे चहूँ ओर राग मल्हार

मेघा ने नेह बूँदे जब बरसाई...
धानी चुनर पहन ...

तन मन झूमे जब बूँदे बरस गई
सुख रही ताल तलैया भर गई
आकुल जीव की तपन मिटाई
बेजान पादप भी पल्लवित हुए
उर पंकज खिले सुधा प्राण बचाए

अम्बर ने जब जब मोती बरसाई
धानी चुनर पहन धरा...

सावन ने बूँदे झमाझम बरसायी
सतरंगी इन्द्र धनुष नभ में छायी 
पवन संग झूम रही वृक्ष  लताएँ
सम्मोहन की जादुई  नशा छायी
प्यासी चातक भी हर्षित हो गई  

मेघों ने स्वाति की बूँदें बरसाई....
धानी चुनर पहन धरा ...

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