कान्हा गोकुल को
इन्द्र के कोप से
बचाकर तूने दी
अभय वरदान ..
लौटाई मुस्कान नंद नगरी की
मुसलाधार बारिश में
एक उंगली पर
गोवर्धन पर्वत उठाके ..
गोवर्धन पूजन की
परंमपरा तभी से है बनी
जब से तूने बचायी थी
नगर वासियों की प्राण
प्रेम के वसीभूत तुम
ले लो कुछ सुधी हमारी
हम हैं बड़े अज्ञानी
राग द्वेष से हैं भरे ..
मोह माया की बंधन
छुट रहा न तनिक
लिप्त है माया से तनमन
उबार लो मुझे हूँ तेरे शरण ...
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