Friday 15 December 2017

#वो आखिरी मुलाकात पापा के साथ#

मुझे याद है पापा
आपका मेरे घर आना..
दिन भर की थी मेरी थकान ।
पुताई वाले और मिस्त्रियों ने
घर में रेलम पेल मचाया था ।
 फिर भी आपके आगमन से
 आकुलता ने मन को बहुत हर्षाया था।
सब छोड़ छाड़ दौड़ी मैं आपको लेने ..
उस दिन ट्रेन के लेट से हो गई बैचेन ।
इन्तजार खत्म हुआ ..
माँ और आपका हँसता चेहरा
देख कर मैं आनंदित हो गई ।
 पहले चाय बना ले, घर आकर
 कहा पापा ने ..
मैंने चाय बनाया, चाय बहुत अच्छी
बनी, कहा उन्होंने ...
मैं जुट गई पापा के सेवा में
 हो कर मगन ..
थक गए थे पापा, सो जल्दी ही
  सो गए, कर भोजन ..
तड़के सुबह उठ चाय बनाया मैंने
इतने में पापा घर के चारो
ओर से लगे निहारने ..
कहने लगे घर के सारे
डिजाइन हो गए पूरे !
कोई ख्वाहिशें तो नहीं रही अधूरी..
ये कह कर मंद मंद लगे मुस्काने ।
पापा से खूब सारी बातें की
मैं भी हल्की हो गई, अपनी
सारी बताकर उलझनें ।
न जाने क्यूँ लगता है हर बच्चों को
पापा दूर कर देंगे सारी उलझनें ..
माँ पापा के होते सब
बच्चे ही रहते बने ।
ये पता न था ..
आज हाथों से अपने
 खिला रही आखिरी बार ।
रब के अनहोनी से थी बेखबर...
फिर आते हैं, गए कहकर
भाई के घर ।
तिसरे दिन ही चले गए
दुनियाँ को छोड़ कर ।
ये होगी उनसे हमारी,
मुलाकात आखिरी..
दिल अब भी रो रहा
ये याद कर ।
उनसे किया गया अंतिम वार्तालाप
स्मृति पटल से हटने का नाम
ले ही नहीं रहा ..
एक वर्ष से अधिक हो गए
अब भी हर दिन याद आ रहें हैं
रह रह कर ...

    

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