Thursday 21 December 2017

बुढ़ापे का दर्द

जाने जिन्दगी का
 कौन सा मोड़ है ..
खुशियाँ बाँहों में भरने
 के लिए बेताब है
हर वो चीज मौजूद है
जिसकी चाहत रहती है
फिर भी मन अशांत है,
 धीरे धीरे जिम्मेदारी पूरी
होने को है बच्चे संभल रहे
उसे देख देख के मन भी
बहुत खुश हो रहा है
पर जाने कितने तेजी से 
वक्त फिसलता जा रहा है
लग रहा है अपनों का साथ
जल्दी ही छुटने वाला है
ये काया जीर्ण शीर्ण हो गई
हड्डियों में वो ताकत न रही
चाल भी धीमी हो चली
बस बैठे रहते दूसरे के आश्रित
कोई भी काम न होता तन से
सब कुछ छुट रहा हाथों से ..
ऐसा लगता बुढ़ापे का दस्तक
जल्दी ही आ गया हमपर
बेवक्त का है ये उम्र का दस्तक
बुजुर्गों का दर्द भरा विचार 
हमेशा कौंधता उसके अंतर्मन में

 

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