मेरी माँ ने छै मई को एकादशी उद्दयापन रखा था।बहुत ही भव्य आयोजन रहा ।पंडितों और परम्पराओं के अनुसार माँ ने स्वेच्छा से पूजा विधि ,दान और ब्रह्म भोज कराया ।पूरे रात भजन कीर्तन भी हो रहा था ।मन में एक अजीब तरह की अनुभूति का संचार हो रहा था जैसे देव स्वयं विराजमान हो गए हों ।माँ पापा के गुजरने के बाद थोड़ी उदास सी दिखती है, न जाने क्यों उस दिन उनके चेहरे से अलग ही नूर टपक रहा था मानो पापा दिव्य आलोकिक तेज बनकर माँ के आत्मा में प्रविष्ट हो गए हों । पापा को
बड़ा ही मन था धूमधाम से माँ का एकादशी उद्दयापन करवाने का पर जिन्दगी ने उन्हें मौका ही नहीं दिया ।परंतु उनके बच्चों ने कोई भी कसर नहीं छोड़ा ।सभी रिश्तेदार, मित्र पड़ोसी उपस्थित थे शिवाय हमारे "पापा" के ।लेकिन न जाने क्यों किसी को भी उनकी अनुपस्थिति का एहसास ही नहीं हो रहा था ,लग रहा था वो वहीं हैं इधर उधर कहीं ।जब पूजा विसर्जन हुआ तो पापा के प्रतिमा पर माल्यार्पण के समय सबकी एकाएक तंद्रा टूटी ,हम सभी लोग भाव विह्वल हो उठे ।सबने भींगी आँखों से पापा के चरण छू कर पूष्प अर्पण किया ।माँ को संभालने के लिए मैंने भी खुद को संभाला और अच्छे से उद्दयापन के बाकी बचे पूजन विधि को पूरा होने तक सभी रश्मों को पूरे मन से निभाया ।
Tuesday 26 December 2017
संस्मरण ..
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