Monday 25 December 2017

सच्ची कहानी- -जीवन एक कर्मभूमि

सभी को अपने सारे कर्मों का हिसाब चुकता करना ही  पड़ता है ।जीवन में जो भी कर्म करते हैं उसका फल एक दिन अवश्य मिलता है । यहाँ पर हम जो भी करते हैं, यहीं भुगतना पड़ता है ।इन्सान बूरे कर्म करते वक्त उसके बूरे  परिणाम को नजर अंदाज कर देता है ...बात बहुत पुरानी है , मेरे मायका के दलान पर  बहुत बड़ा और सुंदर राधाकृष्ण जी का मंदिर है ।नित्य दिन पूजा पाठ के लिए पुजारी रहते हैं ।एक दिन मेरी दादी का कुछ खो गया ,बहुत खोजने पर नहीं मिला..वो दुखी हो कर नाराज हो रही थी इस पर मेरे पापा ने झल्लाकर कहा, मेरे कमरे में इतना समान है  कभी कुछ खोया ही नहीं आपका समान मिल जाएगा ।बगल में पुजारी सब सुन रहे थे ।उसी रात मेरे पापा के कमरे में पुजारी  चार डाकू ले के आया और सब कुछ उनलोगों ने चुरा लिया अंत में मेरे पापा पर आक्रमण करने वाला था परंतु पुजारी ही उस समय अपने साथियों से बचा लिया ।पापा इस एहसान के बदले पुजारी को पुलिस से बचाया और जेल जाने से रोक दिया साथ ही सजा माफी भी दिलवा दिया ।उस समय हम सभी भाई बहन बहुत छोटे थे।बड़े होने तक उस पुजारी को दादी के पैर पर रोते गिडगिडाते देखा करती थी ..पुजारी को कुष्ठ रोग हो गया था, उसकी पत्नी का देहांत हो गया था। पूरा परिवार ही बिखर गया था ।इन सभी को वो अपने कर्मों का फल मानता था...सचमुच हम जो बोते हैं वही फसल काटते हैं ।हमारे सभी कर्मों का फल इसी जिन्दगी में भुगतना पड़ता है ।अच्छे कार्य का फल भीअच्छा होता है और बूरे काम का बूरा ही फल मिलता है ...

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