Thursday 7 December 2017

संतुष्टि

अंधविश्वास कैसे
विश्वास में परिणत
होता ये भी आश्चर्य
की बात ..
 कल तक जिसे
समझते फालतू
आज उसी पे यकिन
करने को जी चाहता ..
पंडितों से वेद पुराण
की कथाएँ सुन
जीवन मरण ,
 सांसारिक बंधन
तुच्छ जान पड़ता ..
और धार्मिक कर्मकांड
में ही मन मुक्ति का मार्ग
तलाशता ..
धीरे धीरे स्वयं को
उस पंथ पर बढ़ते
ही पाते ..
सच चाहे जो भी हो
पर इतना तय है
मन जो कार्य कर
संतुष्ट हो, जिससे
मिले शांति वही सही ..
मृत्यु बाद जाने कौन गति ?
 उन्हें गर मिले सदगति
 इन धार्मिक कर्मकांडो से
चाहे हो ये अतिश्योक्ति
फिर भी करने को जी चाहता ..

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